पारसमल बच्छावत
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ज्ञान, महा-ज्ञान देने वाले बहुत मिल जाते हैं, परंतु जीवन की छोटी-छोटी उलझने-सुलझानेवाले जो है वो ही जीवन के हितकारी होते हैं। पानी की बूंद को नहीं जानेंगे तो सागर का अस्तित्व कैसे जानेंगे? छोटी-छोटी बातें नहीं समझेंगे तो बड़ी-बड़ी बातें नहीं समझ पाएंगे।
जो जीवन में छोटे-छोटे, अणुव्रत के व्रतों को आचरण में नहीं अपनायेगा, वो कभी महाव्रतों में प्रवेश नहीं कर पायेगा।
जो सूर्य की रश्मियों का अनुभव कर सकता है वो ही किरण से नाता जोड़ पाता है, अनुभव कर पाता है, वो ही किरण के द्वारा सूर्य का स्वरूप जान सकता है।
एक-एक सांस के अनुभव से ही हम प्राण की क्रिया अनुभव कर पाते हैं, हर क्रिया हमारी ऊर्जा है, इसी ऊर्जा से जीवन जीने की कला अनुभव कर सकते हैं, इसी निरंतर सुख के अनुभव से आनंद को पा सकते हैं।
बचपन से बुढ़ापा जैसे समय के निरंतर बहाव से गुजरता है। बुढ़ापा में बचपन की वो छोटी-छोटी घटनायें प्रेरित करती है, एक अनुभव का मार्ग दर्शन कराती है। यही हमारा मार्ग-दर्शन एक महाव्रत के रूप में खिलता है।
यही महाव्रत हमें सत्य के प्रकाश का दर्शन करता है। इसी महाव्रत के कारन जीवन के अंधेरे को ऊजागर कर सकते हैं। जीवन में छोटे-छोटे व्रतों का संकल्प ‘सच’ है। और महाव्रतों में प्रवेश करना ‘सत्य’ है।
”छोटे,छोटे व्रतों के पालन से जीवन सयंम-मय हो ,
महाव्रतों के द्वारा ”सच से सत्य” जीवन आनंद-मई हो ” !