सिर्फ़ पूर्वी यूपी में ही इंसेफेलाइटिस से विकलांग बच्चों की संख्या दस हज़ार
न्यूज डेस्क
‘अपने घर को तो सुधार नहीं पाए चले जग सुधारने’। यह कहावत यूपी और योगी सरकार पर बिल्कुल फिट बैठती है। बीमारी, भुखमरी, शिक्षा में गिरावट से जूझती यूपी के गांव में बच्चेइंसेफेलाइटिस जैसी खतरनाक बीमारी पैदा हो रहे है। लेकिन यूपी सरकार को ना ही इसकी सुध है ना इन बच्चों की भविष्य की चिंता। जबकि यूपी में इससे ज्यादा प्रचार तो गौ रक्षा नाम के ख़बरों को मिलती है।
एक अनुमान के मुताबिक़ सिर्फ़ पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही इंसेफेलाइटिस से विकलांग हुए बच्चों की संख्या दस हज़ार है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने कई बार उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश देते हुए राज्य में इंसेफेलाइटिस से विकलांग हुए बच्चों का आधिकारिक आंकड़ा जारी कर उनके इलाज और पुनर्वास के उपाय सुनिश्चित करने के लिए कहा है। लेकिन अभी तक इस मामले में सरकार की तरफ़ से कोई आधिकारिक आंकड़े जारी नहीं किए गए हैं।
ऐसा अनुमान है कि भारत में इंसेफेलाइटिस से ग्रसित होने वाले कुल बच्चों में लगभग एक-तिहाई जीवन भर के लिए शारीरिक या मानसिक विकलांग हो जाते हैं।
और पढ़ें : ‘सभी झूठे केस इसलिए सरकार ने लिया वापस!’
अब इंसेफेलाइटिस की मार झेल चुके प्रेमलता को ही ले लीजिये। अपने तीन बेटों के साथ प्रेमलता की उदास आँखें पूर्वी उत्तर प्रदेश की चरमराती हुई स्वास्थ व्यवस्था की गवाही दे रही थीं।
प्रेमलता बताती हैं कि उनके मंझले बेटे पीयूष को अभी एक महीना पहले ही एइएस का झटका आया था। छोटे वाले प्रतीक को छह महीने पहले इंसेफेलाइटिस का झटका आया। पहले बुखार आया, फिर उल्टी और थोड़ी ही देर में बच्चे ने आंख पलट दिया। हम लोग मेडिकल ले गए। अभी तो ठीक है पर डॉक्टर ने कहा है कि इंसेफेलाइटिस का पूरा असर क्या हुआ है, बच्चे पर यह तो बड़ा होने पर ही पता चलेगा।”