बीमारी नहीं देखती भगवान-इंसान में फर्क, 20 दिन बुखार में तपते हैं यहां के जगन्नाथ, काढ़ा पि होते हैं ठीक
बीमारी के मामले में भगवन और इंसान में कोई फरक नहीं। इसी बात को दर्शाता है भगवान जगन्नाथ को बुखार आना। सुनने में भले ही ये आपको अजीब भले ही लगे लेकिन ऐसा होता है। धर्म की नगरी काशी में जेष्ठ की पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ के जलाभिषेक की परम्परा है और लोगों के प्यार में भगवान इतना स्नान कर लेते हैं कि बीमार पड़ जाते है। इसके बाद वे पूरे पंद्रह दिनों के लिए बुखार में तपते रहते हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार भक्तों के समतुल्य खुद को दर्शाने के उदेश्य से भगवान जगन्नाथ अपनी लीला के तहत ज्येष्ठ पूर्णिमा पर के दिन अर्ध रात्रि के बाद बीमार पड़ जाते हैं। वैसे तो काशी नगरी बाबा विश्वनाथ की नगरी मानी जाती है। पिछले तीन सौ सालों से ये परम्परा अनवरत ऐसे ही चली आ रही है।
वाराणसी के लोग इस परम्परा को बखूबी निभाते चले आ रहे हैं। पूरे दिन स्नान करने के बाद भगवान जब बीमार पड़ जाते हैं तो उन्हें काढे के रूप में परवल के जूस का भोग लगाया जाता है और प्रसाद स्वरूप यही काढ़ा भक्तों में बांट दिया जाता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिनों से बीमार पड़े भगवान जगन्नाथ 15 दिनों बाद स्वस्थ होते हैं और पंद्रह दिनों तक भगवान को काढ़े का भोग लगाया जाता है तब जाकर वे ठीक हो पाते हैं। भगवान स्वस्थ होकर अपनी मौसी के घर के लिए निकल जाते हैं।