यह है रथ यात्रा निकलने का इतिहास
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कोलकाता टाइम्स
जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों निकलती है इसके पीछे भक्तों और विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। एक आधुनिक मत के अनुसार कहा जाता है कि राजा रामचन्द्रदेव ने यवन महिला से विवाह कर जब इस्लाम धर्म अपना लिया तो उनका मंदिर में प्रवेश निषेध हो गया था तब उनके लिए ही यह यात्रा निकाली जाने लगी क्योंकि वे जगन्नाथ जी के अनन्य भक्त थे। जबकि रथ यात्रा के पीछे का पौराणिक मत यह है कि स्नान पूर्णिमा यानी ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन जगत के नाथ श्री जगन्नाथ पुरी का जन्मदिन होता है। उस दिन प्रभु जगन्नाथ को बड़े भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा के साथ रत्नसिंहासन से उतार कर मंदिर के पास बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है।
108 कलशों से उनका शाही स्नान होता है। फिर मान्यता यह है कि इस स्नान से प्रभु बीमार हो जाते हैं उन्हें ज्वर आ जाता है। तब 15 दिन तक प्रभु जी को एक विशेष कक्ष में रखा जाता है। जिसे ओसर घर कहते हैं। इस 15 दिनों की अवधि में महाप्रभु को मंदिर के प्रमुख सेवकों और वैद्यों के अलावा कोई और नहीं देख सकता। इस दौरान मंदिर में महाप्रभु के प्रतिनिधि अलारनाथ जी की प्रतिमा स्थपित की जाती हैं तथा उनकी पूजा अर्चना की जाती है।