सिर्फ आपको ही नहीं डायनासोर को भी होती थी डैंड्रफ, गवाह है 125 मिलियन पुराना इतिहास
कोलकाता टाइम्स
जिस तरह आजकल के सांप, छिपकली जैसे प्राणि अपनी खाल बदलते हैं, जिसे आम भाषा में केंचुली बदलना कहा जाता है, ऐसा माना जाता है कि इसी तरह से लुप्त हो चुके विशाल जीव डायनार्सोस भी अपनी त्वचा को बदलते हैं। हांलाकि ये बात अब तक रहस्य बनी हुई थी कि आखिर ये जीव इतनी विशालकाय परत को कैसे अपने से अलग करते होंगे। ये बात विशेष रूप से पंखवाले या उड़ने वाले डायनासोर्स के बारे में और भी हैरान करने वाली थी। अब इस राज से पर्दा उठाया हैं करीब 125 मिलियन वर्ष पुराने डैंड्रफ के अवशेषों ने जिन्होंने ये बताया कि डायनासोर को भी रूसी होती थी और वही उनके त्वचा बदलने का जरिया थी। प्राप्त हुआ यह जीवाश्म डैंड्रफ कॉर्नियोसाइट्स नामक कठिन कोशिकाओं से बना है, जो सूखे प्रोटीन केराटिन से भरा है।
झड़ जाती थी पुरानी त्वचा
इस डैंड्रफ के अवशेष मिलने के बाद शोधकर्ताओं को ये अंदाज होने लगा है कि संभवत: पंखधारी डायनासोर की त्वचा किस तरह बदलती रही होगी। जनरल नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार प्राणियों की आधुनिक त्वचा मध्य जुरासिक काल के आसपास विकसित होनी आरंभ हुई होगी, ये लगभग वही समय था जब त्वचा से जुड़े तमाम परिर्वतन शुरू हुए थे। इसी दौरान के मिले डैंड्रफ के इस अवशेष में डायनासोर के त्वचा बदलने राज छिपे हैं। ये डैंड्रफ पहला सबूत है कि डायनासोर अपनी त्वचा कैसे बदलते थे। यह अध्ययन बताता है कि वे स्पष्ट रूप से फ्लेक्स में अपनी त्वचा को झाड़ते थे, ना कि एक बड़ी केंचुल या खाल के बड़े टुकड़ों के रूप में, जैसे कई आधुनिक सरीसृपों में होता है।