July 3, 2024     Select Language
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स्वदेशी रॉकेट ने खोला ब्रिटिश के खिलाफ टीपू सुल्तान के आधुनिक युद्ध तकनीकों का राज

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कोलकाता टाइम्स 

फिर मिले 18 वीं सदी के युद्ध के रॉकेट। वह भी पुरे 1000। कर्नाटक के शिवमोगा जिले में सूखे कुएं के तलछट की खुदाई के दौरान यह “रॉकेट” मिले। जांच में पता चला कि ये सभी रॉकेट 18वीं सदी के बड़े योद्धा और मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के हैं। ऐसा माना जा रहा है कि युद्ध में इस्तेमाल करने के लिए इन्हें छिपाकर रखा गया था।

पुरातत्व विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि राजधानी बेंगलुरु से 385 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित शिवमोगा में एक पुराने कुएं की खुदाई के दौरान मजदूरों को संयोग से उस काल में इस्तेमाल हुए लोहे के बेलनाकार रॉकेट मिले। इन रॉकेट में पोटेशियम नाइट्रेट, चारकोल और मैग्नीशियम पाउडर भरा हुआ था। जिस समय टीपू सुल्तान की अंग्रेजों के साथ  जंग हो रही थी उस समय नेपोलियन युद्धों में इस्तेमाल होने वाले ब्रिटिश कंजर्व रॉकेट का इस्तेमाल करते थे। अंग्रेजों के उसी रॉकेट के प्रोटोटाइम के तौर पर टीपू सुल्तान ने मैसूरियन रॉकेट के नाम से प्रारंभिक स्वदेशी रॉकेट विकसित किया।
पुरातत्व विभाग के आयुक्त वेंकटेश ने बताया कि छह साल पहले भी इसी जगह से टीपू सुल्तान काल के इसी प्रकार के रॉकेट मिले थे। इन रॉकेटों को ‘शिवप्पा नायक म्यूजियम शिवमोगा’ में ‘रॉकेट गैलरी’ के तौर पर संरक्षित किया जाएगा। टीपू सुल्तान काल के इसी तरह के रॉकेटों को लंदन म्यूजियम में संरक्षित रखा गया है। बता दें कि टीपू सुल्तान ने ताकतवर ब्रिटिश सेना से मुकाबले के लिए आधुनिक युद्ध तकनीकों का इस्तेमाल किया था। उनका नाम देश के पहले ऐसे शासक के तौर पर दर्ज है, जो समूह को निशाना बनाने वाले रॉकेटों के इस्तेमाल की सैन्य युद्धनीति देश में लेकर आए थे।
गौरतलब है कि मैसूर को अपने कब्जे में करने के लिए अंग्रेजों ने कई बार हमले किए। एक-दो नहीं, बल्कि तीन-तीन लड़ाईयां लड़ीं. लेकिन टीपू सुल्तान की वीरता के आगे वे टिक नहीं सके। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लगातार जीत हासिल करने के बाद साल 1799 में चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में इस टीपू सुल्तान की मौत हो गई थी।

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