February 22, 2025     Select Language
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सागर कितना पास था फिर भी प्यास था

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कोलकाता टाइम्स 

उनकी जुबान से उस खारे चाय का स्वाद अब कोसों दूर जा चुका है जो एक दशक पहले तक उन्हें रोज पीनी पड़ती थी। कमरुनिसा पूवुम्मदा का घर भारत के दक्षिण पश्चिमी सीमा से लगे कवराती द्वीप पर है। अच्छे से बनी अपनी चाय के नायाब जायके को वह पानी साफ करने के इस प्लांट से जोड़ती हैं जो की उनके घर में लगा है। इसकी वजह यह है कि इस प्लांट ने उनके इलाके में पीने लायक पानी घर घर पहुंचा दिया है।

पुराने बीचों, दलदल और मूंगे से घिरे इलाके में रहने वाले लोग कई दशकों तक पीने के साफ पानी की किल्लत का सामना करते रहे। गुजरते सालों के साथ समुद्र का साफ नीला पानी द्वीप के सीमित भूजल के साथ मिलता चला गया और उसके स्वाद में खारापन घुलता गया। जमीन की कमी के कारण भूजल के स्रोत सीवेज की हौदियों के जरूरत से ज्यादा नजदीक हो गए। नतीजतन पानी इतना गंदा हो गया कि ना पीने के काबिल रहा ना खाना बनाने और ना ही नहाने के।

पानी का खारापन खत्म करने वाले प्लांट में काम करने वाले हिदायतुल्ला चेक्किल्लाकम बताते हैं कि कुआं खोदने से लेकर बारिश का पानी जमा करने जैसे कई उपाय आजमाए गए। या तो इनका फायदा नहीं होता या फिर ये बेहद खर्चीले साबित हुए। हिदायतुल्ला बताते हैं, “अच्छा पीने का पानी तब बहुमूल्य सामान था।”

पूर्णिमा जालिहाल के नेतृत्व में चेन्नई के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी की टीम पहली बार 2004 में कवराती द्वीप आई। उनके पास बोतल में बंद पानी के कार्टून थे और पानी का खारापन दूर करने वाले प्लांट का खाका। यहां पहुंचने के बाद उन्होंने खुद को एक दुर्बल इकोसिस्टम के बीच पाया जहां द्वीप प्रशासन का साफ निर्देश था कि वो किसी भी चीज को नष्ट ना करें। उन्हें उस चाय से बचने की भी चेतावनी दी गई जिसकी एक चुस्की भर से उल्टी आ जाती थी।

पूर्णिमा और उनकी टीम को अपने प्लांट का डिजाइन बदलना पड़ा ताकि इकोसिस्टम को नुकसान ना हो। टीम ने तैरने वाले ढांचे बनाए और उन्हें समंदर में ले कर गए, यहां तक कि पानी के नीचे रहने वाले पाइपलाइन भी. एक साल के भीतर प्लांट बन कर तैयार हो गया और हर रोज एक लाख लीटर पीने का पानी तैयार होने लगा। उसके बाद गलियों में पाइपलाइन डाली गई, हर 25 मीटर पर सामुदायिक नल लगाए गए और 2005 में पानी की सप्लाई भी चालू हो गई।

पूवुम्मदा बेगम और कारावती द्वीप के 11,200 लोगों के लिए यह किसी क्रांति से कम नहीं था। इसकी सफलता से उत्साहित एनआईओटी ने 2011 में दो और प्लांट आस पास के द्वीपों पर लगाए. छह और प्लांट बनाने का काम चल रहा है।

प्लांट से हर नागरिक को 9 लीटर पानी मिलता है। जिसमें तीन लीटर पीने के लिए और पांच लीटर खाना बनाने के लिए। कपड़े धोने या दूसरे कामों के लिए इस पानी का इस्तेमाल नहीं किया जाता।  पानी की हर बूंद कीमती है और इन लोगों से बेहतर भला इस बात को और कौन जानेगा।

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