व्रत में दूध पीना यानी मांस खाने जैसा समान !
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कोलकाता टाइम्स
यह गलत साबित हो रहा है कि आहार में दूध शामिल करनेे वाले लोग सात्विक भोजन करते हैं।
प्रोटेस्टेंट ईसाइयों की एक छोटी सी शाखा क्वेकर संप्रदाय के अनुयायियों ने तो सत्रहवीं शताब्दी से ही दूध और उससे बने आहार का निषेध शुरू कर दिया था।
उनका कहना था कि दूध पशुओं से प्राप्त होने वाले मांस की तरह है। बच्चा जब तक अपनी मां का दूध पीता है तभी तक ठीक है। उसके दो तीन साल का होने के बाद मां जब स्तनपान नहीं करा पाती, तो समझ लेना चाहिए कि दूध की जरूरत खत्म हो गई।
मुंबई स्थित हैफकिन रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधार्थी डॉ. एस. बुद्धिराजा के मुताबिक, किसी भी पशु का शिशु जन्म के कुछ समय बाद ही दूध पीना छोड़ देता है। सभी पशु अपनी मां का दूध पीते है। एक आदमी ही है, जो दूसरों की माताओं का, यहां तक जानवरों की माताओं का भी दूध पीता है। दूध से जो भी पदार्थ बनते हैं, वे वासना और हिंसा बढ़ाते हैं।
मुंबई स्थित हैफकिन रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधार्थी डॉ. एस. बुद्धिराजा के मुताबिक, किसी भी पशु का शिशु जन्म के कुछ समय बाद ही दूध पीना छोड़ देता है। सभी पशु अपनी मां का दूध पीते है। एक आदमी ही है, जो दूसरों की माताओं का, यहां तक जानवरों की माताओं का भी दूध पीता है। दूध से जो भी पदार्थ बनते हैं, वे वासना और हिंसा बढ़ाते हैं।