कोलकाता टाइम्स
गोकर्ण दक्षिण भारत के कर्नाटक में मैंगलोर का एक छोटा सा गांव। इस स्थान से हिन्दू धर्म के लोगों की गहरी आस्थाएं जुड़ी हैं। पुराणों में तो इस तीर्थ को ‘मोक्ष का द्वार’ कहा गया है। धार्मिक मान्यता के चलते इस जगह को ‘दक्षिण का काशी’ के नाम से भी जाना जाता है।
इस क्षेत्र में सभी देवता, मुनि, गंधर्व, मनुष्य, भूत, पिशाच, नाग आदि भगवान शंकर की आराधना करते हैं। जो मनुष्य तीन रात्रि तक यहां उपवास कर भगवान शिव की अर्चना करता है। उसे दस अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है। यहां बारह रात्रि तक उपवास करने वाल कृतार्थ हो जाता है।
गोकर्ण का महाबलेश्वर मंदिर यहां का सबसे पुराना मंदिर है। भगवान शिव को समर्पित पश्चिमी घाट पर बसा यह मंदिर 1500 साल पुराना है और कर्नाटक के सात मुक्तिस्थलों में से एक है। कहा जाता है कि यहां स्थापित छह फीट ऊंचे शिवलिंग के दर्शन 40 साल में सिर्फ एक बार होते हैं।
यहां भगवान शिव के महाबलेश्वर नामक आत्मतत्व शिवलिंग है। इसकी आराधना करने से ब्रह्महत्या से छुटकारा पाया जा सकता है। शिवपुराण में उल्लेख मिलता है कि समस्त तीर्थों की यात्रा करने के पश्चात भी जब इच्छाकुवंश के राजा मित्रसह की ब्रह्महत्या दूर नहीं हुई तब वे गौतममुनि के आदेश से यहां आए थे।
माना जाता है कि शिवजी का जन्म गाय के कान से इस जगह का जन्म हुआ और इसी वजह से इसे गोकर्ण कहा जाता है। साथ ही एक धारण के अनुसार गंगावली और अघनाशिनी नदियों के संगम पर बसे इस गांव का आकार भी एक कान जैसा ही है।
कहा जाता है कि भगवान शिव ने यह शिवलिंग रावण को उसके साम्राज्य की रक्षा करने के लिए दिया था, लेकिन भगवान गणेश और वरुण देवता ने कुछ चाल चलकर शिवलिंग यहां स्थापित करवा दिया। तमाम कोशिशें करने के बावजूद रावण इसे निकाल नहीं पाया। तभी से यहां भगवान शिव का वास माना जाता है।
गोकर्ण का एक और महत्त्वपूर्ण मंदिर महागणपति मंदिर है, जो भगवान गणेश को समर्पित है। गणेश जी ने यहां शिवलिंग की स्थापना करवाई थी, इसलिए यह उनके नाम पर इस मंदिर का निर्माण करवाया गया।