मौत के घाट उतारने से पहले जल्लाद कान में फुसफुसाता है यह
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कोलकाता टाइम्स
फिल्मों में फांसी का सीन और वास्तव में काफी अंतर होता है। वास्तव में फांसी की सजाप्राप्त इंसान के साथ जल्लाद एक खास काम करता है। वह काम है कान में कुछ कहता है। हो सकता है कि आपने फिल्मी पर्दे पर ऐसा होते बिलकुल न देखा हो लेकिन असल जिंदगी में तो ऐसा ही होता है। दरअसल, फांसी के समय के लिए भी कुछ नियम बनाए गए हैं जिनमें से फांसी का फंदा, फांसी देने का समय, फांसी की प्रकिया आदि शामिल हैं। सबसे पहले
आपको बताना चाहेंगे कि भारत में केवल दो ही जल्लाद हैं। इन्हें सरकार द्वारा कैदियों को फांसी देने की सैलरी भी दी जाती है। इस काम को करने के लिए बहुत बड़ा कलेजा चाहिए, किसी को अपने हाथों से मौत के घाट उतारना सच में अपने आप में बहुत बड़ा काम है। आम इंसान को फांसी देने के लिए सरकार इन जल्लादों को 3000 रुपया देती है जबकि किसी आतंकवादी को फांसी देने के लिए यह रकम बढ़ा दी जाती है। आपको ये बात शायद ही पता होगी की इंदिरा गांधी के हत्यारों को फांसी देने वाले जल्लाद को सरकार द्वारा 25000 रुपये दिए गए थे।
दरअसल, फांसी देने के कुछ क्षण पहले जल्लाद अपराधी के कान में माफी मांगता है और कहता है कि ‘मुझे माफ कर दो भाई, मैं मजबूर हूं’ यदि मरने वाला व्यक्ति हिन्दू हो तो जल्लाद उसको राम-राम बोलता है। वहीं अगर मरने वाला व्यक्ति मुस्लिम हो तो जल्लाद उसको आखिरी सलाम बोलता है। साथ ही जल्लाद उनसे कहता है कि ‘मैं सरकार के हुकुम का गुलाम हूं इसलिए चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता।’ बस इतना कह कर ही वह फांसी का फंदा खींच देता है।
फांसी से जुड़ी एक रोचक बात ये भी है कि भारत में जितने भी अपराधियों को फांसी की सजा दी जाती है, उन सब के लिए बिहार की बक्सर जेल में ही फंदा तैयार कराया जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां फांसी के फंदे की मोटाई को लेकर भी मापदंड तय किए गए हैं। जी हां, फंदे की रस्सी डेढ़ इंच से ज्यादा मोटी रखने के निर्देश हैं। यहां तक कि इस फंदे की कीमत भी काफी कम रखी जाती है। दस साल पहले फांसी का फंदा 182 रुपए में जेल प्रशासन को उपलब्ध कराया गया था।