कोलकाता टाइम्स
महाभारत के युद्ध में पांडवों ने कम सेना होने के बावजूद भी बड़ी ही कुशलता से कौरवों का विनाश कर दिया था। इसका श्रेय मुख्य रूप से श्रीकृष्ण को जाता है। श्रीकृष्ण की रणनीति के आगे भीष्म से लेकर गुरु द्रोण तक किसी भी योद्धा का पराक्रम टिक नहीं पाया। लेकिन एक ऐसा योद्धा भी था जिसके आगे श्रीकृष्ण की रणनीति बेकार साबित हो सकती थी। महाभारत के महान योद्धाओं अर्जुन, कर्ण, भीष्म, अभिमन्यु इस योद्धा के सामने बिलकुल बौने थे।
यह योद्धा जो इन सभी से कई गुना ज्यादा बलशाली और साहसी था। इतना ही नहीं अगर श्रीकृष्ण उसे कुरुक्षेत्र में आने से ना रोकते तो कौरव-पांडव दोनों पक्षों के सारे योद्धा मारे जाते और अकेला वो ही योद्धा जीवित बचता। वह था महान बर्बरीक। भीम के पुत्र घटोत्कच का पुत्र था। उसने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उनसे तीन अजेय बाण प्राप्त किए थे। साथ ही अग्नि देव ने उसे एक दिव्य धनुष दिया था जिनसे जीत पाना किसी के लिए भी संभव नहीं था।
बर्बरीक ने युद्ध करने की संपूर्ण कला अपनी मां से ही सिखी थीं। बर्बरीक ने गुरुदक्षिणा के तौर पर अपने माँ को यह वचन दिया था कि वे युद्धभूमी में कमजोर पक्ष का ही साथ देंगे। चाहे फिर कमजोर पक्ष किसी का भी हो।
श्रीकृष्ण, बर्बरीक के दिव्य बाणों और युद्ध में कमजोर पक्ष का साथ देने वाले वचन के बारे में जानते थे। इसलिए वो नहीं चाहते थे कि बर्बरीक युद्ध में भाग ले। क्योंकि अगर वो युद्ध में भाग लेता तो पहले तो वह निश्चित ही अपने पिता भीम के पक्ष का साथ देता, लेकिन जब कौरवों का पक्ष कमजोर होने लगता तो वह उनसे जा मिलता। अपने पराक्रम से पांडवों के पक्ष को कमजोर करने के बाद वह फिर उनके पक्ष में आ जाता। इस तरह वह अपने अलावा हर किसी का नाश कर देता।
महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले श्रीकृष्ण ने सभी योद्धाओं से एक सवाल किया था। उन्होंने पूछा था कि वह योद्धा अकेले इस युद्ध को कितने दिनों में खत्म कर सकता है। भीष्म ने कहा था कि वे बीस दिन में इस युद्ध को अकेले खत्म कर सकते हैं। द्रोणार्चाय ने पच्चीस, कर्ण ने चौबीस और अर्जुन ने अट्ठाईस दिनों में युद्ध को अकेले समाप्त करने की बात कही थी। यही सवाल जब श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा, तब उसने एक ही क्षण में युद्ध खत्म करने की बात कही थी।
बर्बरीक का जवाब सुनकर श्रीकृष्ण ने उनसे अपने तीनों बाणों के महत्व के बारे में पूछा। तब बर्बरीक ने कहा कि मेरा पहला बाण उन सभी वस्तुओं पर निशान लगा देता है, जिन्हें मैं खत्म करना चाहता हूं। दूसरा बाण उन सभी वस्तुओं को निशान लगा देता है, जिन्हें मैं बचाना चाहता हूं। तीसरा बाण पहले बाण द्वारा निशान लगाई सभी वस्तुओं का विनाश कर देता है और अंत में तीनों बाण पुनः मेरे पास लौट आते हैं।
बर्बरीक की शक्तियों के बारे में जानने के बाद श्रीकृष्ण समझ गए थे कि अगर ये योद्धा युद्धभूमि में आ जाएगा तो कौरव-पांडव सभी मारे जाएंगे। तभी पांडवों को युद्ध में विजयी बनाने के लिए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनका सिर दान में मांग लिया। बर्बरीक महान दानी थे, इसलिए उन्होंने सिर दान में देने की बात स्वीकार ली, लेकिन इसके बदले में एक शर्त रखी।
बर्बरीक इस महान युद्ध को देखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपना सिर दान में देने के बदले पूरा युद्ध अपनी आंखों से देखने के लिए दिव्य दृष्टि मांगी थी। तब भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के सिर को एक ऊंचे पहाड़ पर स्थित कर दिया और उनके बिना शरीर के सिर को दिव्य दृष्टि भी प्रदान की। ताकि वह पूरा युद्ध अपनी आंखों से देख सके। साथ ही उसके इस महान बलिदान से प्रसन्न होकर कलियुग में अपने ही नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान भी दिया था।