सावधान : इन खतरों का आगाज़ है उम्र से पहले मेनोपोज़
कोलकाता टाइम्स
ज्यादातर महिलाओं में मेनोपॉज की उम्र 45 से 50 साल होती है। लेकिन कई बार कुछ महिलाओं में 30-40 साल में ही मेनोपॉज हो जाता है, जिसके कारण उन्हें कई तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मेनोपॉज कोई बीमारी नहीं है बल्कि महिलाओं के शरीर की एक अवस्था है जिसके बाद महिलाओं में कई तरह के हार्मोनल बदलाव नजर आते हैं।
भारतीय महिलाओं में ज्यादा खतरा : एक अध्ययन से पता चला है कि लगभग एक-दो प्रतिशत भारतीय महिलाएं 29 से 34 साल के बीच रजोनिवृत्ति के लक्षणों का अनुभव करती हैं। इसके अतिरिक्त, 35 से 39 साल की उम्र के बीच की महिलाओं में यह आंकड़ा आठ प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
मेनोपॉज के दौरान परेशानियां : मेनोपॉज के वक्त कुछ समस्यायें हो सकती हैं, वजन बढ़ना, चिड़चिड़ापन, थकान, लगातार खाते रहने की चाहत आदि मेनोपॉज के प्रमुख लक्षण हैं। हालांकि यह समस्या सभी महिलाओं में एक जैसे नहीं हो सकते. घबराहट ज्यादातर महिलाओं में होने वाली आम समस्या है. यह समस्या रात के समय बहुत ज्यादा बढ़ जाती है।
पोस्ट मेनोपॉजल ऑस्टियोपोरोसिस : इसके अलावा मेनोपॉज के बाद स्त्रियों को भी ऐसी समस्या होती है, जिसे पोस्ट मेनोपॉजल ऑस्टियोपोरोसिस कहा जाता है। दरअसल मेनोपॉज के बाद स्त्रियों के शरीर में फीमेल हॉर्मोन एस्ट्रोजेन का स्राव कम हो जाता है। यह हॉर्मोन उनकी हड्डियों के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है। इसकी मात्रा घटने की वजह से हड्डियों से कैल्शियम का रिसाव होने लगता है। यह शरीर का अपना मेकैनिज्म है, जब खून में कैल्शियम की कमी होती है तो उसे पूरा करने के लिए हड्डियों से रक्त कैल्शियम खींचने लगता है, नतीजतन हड्डियां कमजोर पड़ जाती हैं. इसके अलावा कैल्शियम के मेटाबॉलिज्म में भी यह हॉर्मोन मददगार साबित होता है।
प्रीमेच्योर मेनोपॉज के लक्षण : अनियमित पीरियड्स या पीरियड्स का मिस हो जाना। सामान्य से बहुत ज्यादा या कम पीरियड्स आना। खून में असंतुलन होने के कारण गर्मी लगती है और पसीना आता है। अक्सर दिल की धड़कन तेज हो जाती है। प्राइवेट पार्ट में कई तरह के बदलाव आते हैं।त्वचा में रूखेपन की समस्या हो जाती है। स्वभाव में चिड़चिड़ापन हो जाता है। नींद नहीं आती है।