इंसानों का सूप पीनेवाली इस जाती को मौत में नहीं यकीन
[kodex_post_like_buttons]

कोलकाता टाइम्स
आदिवासियों की कई कहानियाँ हैं जो नरभक्षण या अजीब प्रकार की प्रथाओं से जुडी हुई हैं। यह कहानी एक जानी मानी भारतीय आदिवासियों की है जो अमेज़ान के वर्षा वनों के किनारे रहते हैं और जिन्हें यानोमामी आदिवासी कहा जाता है। ये आदिवासी लोग अविश्वसनीय कामों और प्रथाओं तथा अपने रहने तरीके के लिए जाने जाते हैं। इन आदिवासी लोगों की जीवनशैली से जुड़े हुए रोचक तथ्यों के बारे में जानें।
तो इस अजीब प्रथा के बारे में अधिक जानें और इस जनजाति द्वारा राख खाने की इस प्रथा के पीछे छुपे तर्क को जानें। ये यानोमामी जनजाति के लोग हैं और यह जनजाति अमेज़ान के वर्षा वन क्षेत्र में लगभग 200-250 गाँवों में फ़ैली हुई है। वे प्राकृतिक रूप से मृत्यु को प्राप्त हुए व्यक्ति की राख से बना सूप पीते हैं। ज़रूरी नहीं कि मृत व्यक्ति उनका कोई रिश्तेदार हो, वह उनकी जाति का कोई भी व्यक्ति हो सकता है।
यह जनजाति मृत्यु में विश्वास नहीं रखती। बल्कि उनका ऐसा मानना है कि विरोधी जनजाति के किसी जादूगर ने उनकी प्रजाति के किसी व्यक्ति पर हमला करने के लिए बुरी आत्मा भेज दी है। इसके उपाय हेतु वे सोचते हैं कि उस व्यक्ति के शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया जाए।
उनका ऐसा मानना है कि मृत व्यक्ति की राख खाने से उनकी जाति के प्रिय सदस्य की आत्मा जीवित रहती है तथा इससे आने वाली पीढ़ियों का भाग्य अच्छा होता है!
मृत व्यक्ति के शरीर को पास के जंगल में पत्तों से ढंककर रख दिया जाता है। 30 से 45 दिनों के बाद वे विघटित शरीर से हड्डियां एकत्रित करते हैं और उन्हें जलाते हैं। हड्डियों के जलने से जो राख मिलती है उसे फ़र्मेंट किये हुए केले के साथ मिलाकर सूप बनाया जाता है। पूरी जनजाति को यह मिश्रण पीना ज़रूरी होता है। इसके लिए जनजाति के सदस्यों के बीच सूप पास किया जाता है। आदर्श रूप से इसे एक बार में ही पीना ज़रूरी होता है।