कुवां खोदने वाले मजदूर से एशियन गेम्स में सोना, दत्तू की कहानी जान रो पड़ेंगे
कोलकाता टाइम्स
ज्यादातर भारतीय खेलप्रेमी दत्तू बब्बन भोकानल को आज एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी के तौर पर जानते हैं। लेकिन इनकी ज़िन्दगी कहानी इतनी संघर्ष और दर्द भरी है जिसे सुनने के बाद आपके आँखों आ जायेंगे। भोकानल दत्तू इंटरनेशनल लेवल पर सफल होने से पहले कुएं की खुदाई से लेकर प्याज बेचने और पेट्रोल पंप पर भी काम कर चुके हैं।
दत्तू के संघर्ष का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने जब रियो ओलंपिक में हिस्सा लिया था, तब उनकी मां कोमा में थी। भोकानल दत्तू महाराष्ट्र में नासिक के पास चांदवड गांव के निवासी हैं। अपने परिवार के सबसे बड़े बेटे दत्तू उस वक्त पांचवीं कक्षा में थे, जब उन्होंने अपने पिता के साथ मजदूर बनकर कमाई करने का फैसला लिया। उनके परिवार में उनकी बीमार मां और दो छोटे भाई हैं।
27 साल के दत्तू ने बताया, ‘ मेरे पिता कुएं खोदने का काम करते थे. मैंने तब अपनी पढ़ाई जारी रखी और कई तरह के काम किए. शादियों में वेटर, खेती का, ट्रैक्टर चलाने आदि। 2007 में स्कूल छोड़कर पेट्रोल पंप पर काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा, ‘मुझे हर माह 3,000 रुपए मेहनताना मिलता था। लेकिन 2011 में उनके निधन के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आ गई।’ दत्तू रात में पेट्रोल पंप पर काम करते थे। 2012 में सेना में भर्ती होने के बाद उनके जीवन का नया सफर शुरू हुआ। पेट्रोल पंप पर समय पर पहुंचने के लिए दत्तू स्कूल से दौड़कर जाते थे और इसी कारण उन्हें सेना में भर्ती होने में मदद मिली।
दत्तू ने पानी के डर को हराते हुए अपने कोच के मार्गदर्शन में रोइंग का प्रशिक्षण शुरू किया। 2013 में उन्हें सेना के रोइंग नोड (एआरएन) में शामिल कर लिया गया। और उसके बाद शुरू हुई उनकी जिंदगी की दूसरी लड़ाई जो सोना जितने का सफर तक पहुंचा।