महज चार रुपये के लिए राष्ट्रपिता ने कस्तूरबा से कही पति और आश्रम छोड़ने की बात
कोलकाता टाइम्स
नवजीवन’ एक साप्ताहिक अखबार था, जिसका प्रकाशन गांधी जी करते थे। ‘मेरी व्यथा, मेरी शर्मिंदगी’ शीर्षक से प्रकाशित लेख में गांधी जी ने गुजरात में अहमदाबाद के अपने आश्रम में अपनी पत्नी कस्तूरबा समेत कुछ अन्य आश्रमवासियों की कमियों की आलोचना की है। लेकिन इस आलोचोना का विषय और वजह किसी को भी दांग कर देगा। गांधीजी कितने वसूल प्रिय और सच्चे थे इस बात का फिर यकीं करा देगा।
गांधी जी ने लिखा कि एक पत्नी का कर्तव्य मानते हुए उन्होंने अपना सारा धन दे दिया, लेकिन समझ से परे यह संसारी इच्छा अब भी उनमें है। उन्होंने लिखा कि एक या दो साल पहले कस्तूरबा ने 100 या 200 रुपए रखे थे, जो विभिन्न मौकों पर अगल-अलग लोगों से भेंट के तौर पर मिले थे। आश्रम का नियम है कि वह अपना मानकर कुछ नहीं रख सकती हैं, भले ही यह उन्हें दिया गया हो। इसलिए ये रुपए रखना अवैध है। उन्होंने लिखा कि आश्रम में कुछ चोरों के घुस जाने की वजह से उनकी पत्नी की ‘चूक’ पकड़ में आई।
गांधी जी ने लिखा कि कस्तूरबा ने गंभीरता से पश्चाताप किया, लेकिन यह लंबे वक्त तक नहीं चला और असल में ह्रदय परिवर्तन नहीं हुआ। उनका धन रखने का मोह खत्म नहीं हुआ। उन्होंने लिखा कि कुछ दिन पहले कुछ अजनबियों ने उन्हें चार रुपए भेंट किए। नियमों के मुताबिक, ये रुपए दफ्तर में देने के बजाय उन्होंने अपने पास रख लिए। इस बात को अपने लेख में ‘चोरी’ बताते हुए गांधी जी लिखते हैं कि आश्रम के एक निवासी ने उनकी गलती की ओर इशारा किया। उन्होंने रुपयों को लौटा दिया और संकल्प लिया कि ऐसी चीजें फिर नहीं होंगी। राष्ट्रपिता लिखते हैं कि मेरा मानना है कि वह एक ईमानदार पश्चाताप था। उन्होंने संकल्प लिया कि पहले की गई कोई चूक या भविष्य में इस तरह की चीज करते हुए वह पकड़ी जाती हैं तो वह मुझे और मंदिर को छोड़ देंगी।