November 23, 2024     Select Language
Editor Choice Hindi KT Popular साहित्य व कला

आश है तो जीवन है, नहीं तो … 

[kodex_post_like_buttons]

कोलकाता टाइम्स

एक गांव में बहुत से ग्वाले रहते थे। गाय-भैंस पालना उनका प्रमुख व्यवसाय था। गांव में एक तालाब था, जिसमें बहुत से मेंढक रहते थे। उन्हीं मेंढकों में आशाराम और निराशाराम नाम के दो जुड़वां भाई भी थे। निराशाराम की आदत थी कि वह किसी भी कठिनाई से घबराकर बहुत जल्दी हार मान लेता था। इसी कारण वह निरंतर दुखी रहता था। इसके विपरीत आशाराम कठिन से कठिन परिस्थिति में भी हार नहीं मानता था और बाधाओं को पार करने का हर संभव प्रयास करता था। अपने जुझारू स्वभाव के कारण उसे कठिनाइयों पर सफलता मिलती और वह सुखी रहता।

गांव के ग्वाले भैंसों और गायों का दूध निकालकर बड़े-बड़े डिब्बों में भर लेते और साइकिलों पर लटकाकर शहर में बेचने जाते थे। उनमें कुछ ग्वाले बेईमान थे। वे तालाब के पास रूककर दूध में पानी मिलाते और तब उसे शहर ले जाते। एक बार की बात है। एक ग्वाला तालाब का पानी दूध से भरे डिब्बे में डाल रहा था तो पानी के साथ निराशाराम भी डिब्बे में चला गया। ग्वाले को इस बात का पता नहीं था। उसने पानी मिलाने के बाद डिब्बे का ढक्कन कस कर बंद कर दिया।
बेचारा निराशाराम बहुत दुखी हुआ। उसने मन ही मन सोचा- ‘हे भगवान, अब तो मैं इस डिब्बे में फंस गया। कभी मैंने दूध में नहाने की भी कल्पना नहीं की थी। यहां तो दूध में ही रहना है। इस छोटे से डिब्बे की तलहटी में भी जगह नहीं है जहां मैं छिपकर रह सकूं। अब तो मरना निश्चित है।’ निराशाराम ने हथियार डाल दिए। दूध में हिचकोले खाने और निराशावादी सोच में डूबे रहने के कारण थोड़ी ही देर में उसकी इहलीला समाप्त हो गई।

शहर पहुंचकर ग्वाले ने जब हलवाई की दुकान पर दूध का डिब्बा खोला तो उसमें निराशाराम का मृत शरीर तैरता मिला। निराशाराम के निराशावादी रवैय्ये के कारण उसकी मौत तो हुई ही, ग्वाले का डिब्बा भर दूध भी बेकार हो गया। निराशावादी लोग खुद का नुकसान तो करते ही हैं, अपने आसपास के वातावरण को भी निराशा और दुख से भर देते हैं। निराशाराम से बिछुडऩे के बाद आशाराम अकेला पड़ गया। वह बार-बार उसी जगह जाता, जहां वह अपने प्रिय भाई निराशाराम से बिछुड़ा था। उसी जगह ग्वाले दूध में पानी मिलाते थे। संयोग से एक बार आशाराम भी पानी के साथ दूध से भरे डिब्बे में फंस गया। अब उसने सोचा- ‘यह तो बड़ी विकट स्थिति है। डिब्बे का ढक्कन खोलने की ताकत कहां से लाऊं। कोई ऐसा यंत्र भी नहीं है कि उसमें छेद कर सकूं। अब मैं क्या करूं? कुछ तो करना ही पड़ेगा।’ वह बाहर निकलने की तरकीब सोचता रहा। कोई उपाय न सूझता था लेकिन उसने हार न मानी। अंतत: उसने सोचा- ‘चलो, उपाय सोचना जारी रखते हैं लेकिन जब तक उचित मार्ग सूझे, तब तक अपने पूर्वजों से प्राप्त तैरने का गुण तो है ही।’ यह सोचता हुआ आशाराम डिब्बे में तैरता रहा। बार-बार चक्कर लगाने के कारण थोड़ी ही देर में दूध का मक्खन अलग होकर सतह पर तैरने लगा। आशाराम भी अब तक थक गया था। वह आराम से मक्खन के ढेर पर बैठ गया।

कुछ ही देर में शहर आ गया। ग्वाला एक बहुमंजिली इमारत में दूध देता था। उसने इमारत के नीचे साइकिल खड़ी की। बड़े डिब्बे का दूध छोटे डिब्बे में डालने के लिए उसका ढक्कन खोला। आशाराम ने मौका मिलते ही बाहर छलांग लगाई और डिब्बे की कैद से मुक्त हो गया। आशाराम की आशावादिता के कारण उसकी खुद की जान तो बची ही, ग्वाले को भी किसी के आगे शर्मिंदा नहीं होना पड़ा। आशावादी लोग खुद को खुश रखने के साथ- साथ अपने वातावरण को भी खुशनुमा बनाए रखते हैं, इसलिए सभी उनको पसंद करते हैं।

Related Posts