कोलकाता टाइम्स
हिंदू धर्म में कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती हैं। जिसमें से एक हैं मनसा माता। देवी मनसा को भगवान शंकर की पुत्री के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि मां मनसा की शरण में आने वालों का कल्याण होता है। ग्रंथों माने तो मानसा माता की शादी जगत्कारू से हुई थी और इनके पुत्र का नाम आस्तिक था।
माता मनसा को नागो के राजा नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी जाना जाता है। मनसा देवी मंदिर का इतिहास बड़ा ही प्रभावशाली है। इनका प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार शहर से लगभग 3 किमी दूर शिवालिक पहाड़ियों पर बिलवा पहाड़ पर स्थित है। लाखों की तादात में लोग मंदिर पहुंचते हैं मां के दर्शन के लिए।
इस मंदिर में देवी की दो मूर्तियां हैं। एक मूर्ति की पांच भुजाएं और तीन मुंह हैं। जबकि दूसरी मूर्ति की आठ भुजाएं हैं। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। कहते हैं माँ मनसा शक्ति का ही एक रूप है जो कश्यप ऋषि की पुत्री थी, उनके मन से अवतरित हुई और मनसा कहलाई। नाम के अनुसार मनसा माँ अपने भक्तों की मनसा (इच्छा) पूर्ण करने वाली हैं।
वैसे तो मनसा देवी को कई रूपों में पूजा जाता है। इन्हें कश्यप की पुत्री तथा नागमाता के रूप में साथ ही शिव पुत्री, विष की देवी के रूप में भी माना जाता है। 14वीं सदी के बाद इन्हें शिव के परिवार की तरह मंदिरों में आत्मसात किया गया। मां की उत्पत्ति को लेकर कहा जाता है कि मनसा का जन्म समुद्र मंथन के बाद हुआ।
विष की देवी के रूप में इनकी पूजा बंगाल क्षेत्र में होती थी और अंत में शैव मुख्यधारा तथा हिन्दू धर्म के ब्राह्मण परंपरा में इन्हें मान लिया गया। इनके सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता ये नाम इस प्रकार हैं मंदिर सुबह 8 बजे खुलता है और शाम 5 बजे मंदिर के पट बंद कर दिए जाते है। दोपहर 12 से 2 तक मंदिर बंद रहता है। इस जगह के अलावा माँ मनसा के मंदिर भारत में और भी जगह हैं। जैसे राजस्थान में अलवर और सीकर में, मनसा बारी कोलकाता में, पञ्चकुला हरियाणा में, बिहार में सीतामढ़ी में और दिल्ली के नरेला में।