सावधान : सिर्फ दो घंटे का साथ और यह बना देगा बच्चे को मानसिक रोगी
कोलकाता टाइम्स :
साथ सिर्फ दो घंटे आपके बच्चे को मानसिक मिलर बनाने के लिए काफी है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि स्मार्टफोन और टैबलेट्स के अत्यधिक प्रयोग के कारण बच्चे मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं। सान डिएगो स्टेट विश्वविद्यालय अमरीका और जॉर्जिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के शोध में सामने आया है कि ऐसे बच्चे जो दिन में 2 घंटे से अधिक देर तक स्मार्टफोन या किसी ऐसे ही गैजेट का इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें सोने में काफी दिक्कत आती है और वे तनाव का शिकार हो रहे हैं। सबसे ज्यादा असर किशोरों और 10 साल से कम उम्र के बच्चों पर हो रहा है।
प्रोफैसर जीन टवैंज और कीथ कैंपवैल ने बताया कि आधे से ज्यादा मानसिक रोगों के शिकार किशोर हैं। शोधकत्र्ताओं ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि स्मार्टफोन या अन्य गैजेट्स के साथ हमें दूसरे कारण भी जानने चाहिएं ताकि हम बच्चों को मानसिक रोगी होने से बचा सकें। बच्चों में दूसरी खेलों के प्रति रुचि पैदा करनी होगी। वैज्ञानिकों ने अभिभावकों को सलाह दी है कि बच्चों के ऑनलाइन और टैलीविजन पर समय व्यतीत करने के समय में कटौती करनी होगी। बच्चों का ध्यान पढ़ाई और खेलों की तरफ आकर्षित करना होगा।
वैज्ञानिकों ने बताया कि आंकड़े जुटाते हुए 3 मुद्दों पर सवाल किए गए। ये मुद्दे थे-भावनात्मक, विकासात्मक या व्यवहार संबंधी। शोध में सामने आया कि किशोर 7 घंटे से ज्यादा समय स्मार्टफोन की स्क्रीन पर बिता रहे हैं जबकि एक घंटा स्क्रीन पर बिताने से अनिद्रा और तनाव जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। वहीं अमरीकी जनकल्याण संस्थान केसर फैमिली फाऊंडेशन द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार रोजाना बच्चे औसतन 7 घंटे 38 मिनट इंटरनैट पर बिता रहे हैं जबकि वर्ष 2004 में यह आंकड़ा 1 घंटा और 17 मिनट का था। बच्चे ऑनलाइन रहकर इंटरनैट सर्फ करने के अलावा कम्प्यूटर गेम्स, आईपॉड पर संगीत सुनना और मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं।
सोशल मीडिया के बच्चों पर पड़ते नकारात्मक प्रभाव से फिक्रमंद ब्रिटेन सरकार बच्चों के लिए इन साइटों और एपों के इस्तेमाल के घंटे मुकर्रर करने के लिए नियम बनाने जा रही है।
महादेव न्यूरो साइकैट्री सैंटर वाराणसी के जाने-माने मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. एम.एन. त्रिपाठी ने एक शोध में बताया कि बदलते परिवेश में स्मार्टफोन और इंटरनैट की लत लोगों की सोचने की क्षमता को नुक्सान पहुंचा रहा है। इससे सामाजिक रिश्ते खत्म होते जा रहे हैं। इनका जरूरत से ज्यादा प्रयोग खतरनाक साबित हो रहा है।