बेरोजगारी की मार : हायर सेकण्ड्री उत्तीर्ण 78 हजार भिखारी
12 वीं पास 45 साल के दिनेश खोधाभाई फर्राटेदार अंग्रेजी में कहते हैं कि मैं गरीब हो सकता हूं लेकिन मैं ईमानदार हूं। मैं दिन के 200 रुपये से ज्यादा कमाता हूं जो कि मेरी आखिरी नौकरी से ज्यादा है। मेरी आखिरी नौकरी एक अस्पताल में वॉर्ड ब्वॉय की थी जिसे दिन के 100 रुपये मिलते थे। दिनेश अहमदाबाद के भद्रकाली मंदिर में 30 लोगों के समूह के साथ भीख मांगते हैं। 52 साल के बी.कॉम तीसरे साल में फेल सुधीर बाबूलाल दिन के 150 रुपये कमाते हैं। अहमदाबाद के वीजापुर गांव से सुधीर अच्छी नौकरी के सपने लेकर आए थे। नौकरी मिल भी गई। 10 घंटे काम कर महीने में 3 हजार मिलते थे। सुधीर बताते हैं कि पत्नी के छोड़ने के बाद वे नदी के किनारे सोते हैं और भीख मांगते हैं।
52 साल के दशरथ एक और भिखारी हैं जिन्होंने गुजरात विश्वविद्यालय से एम.कॉम किया। ये तीन बच्चों पिता हैं। सरकारी नौकरी की चाह रखने वाले दशरथ के पास प्राइवेट जॉब भी नहीं रहा। आज वे मुफ्त में खाना खिलाने वाली संस्थाओं के जरिए जी रहे हैं। उनकी मां अस्पताल में भर्ती हैं। भिखारियों के लिए काम करने वाले मानव साधना एनजीओ के बीरेन जोशी कहते हैं, कि भिखारियों का पुनर्वास मुश्किल है। इसमें उन्हें आसानी से पैसा मिल जाता है। समाजशास्त्री गौरांग जानी के अनुसार, कि डिग्री लेने के बाद लोग भीख मांग रहे हैं तो ये बताता है कि देश में बेरोजगारी कितनी ज्यादा है। संतोषजनक नौकरी नहीं मिलने के बाद वे भीख मांगने लगते हैं।