कोलकाता टाइम्स :
अक्सर हमारे आस-पास जब कोई न हो तब ऐसी अनुभूति कि कहीं कोई है या भूत होने का अहसास सि़र्पâ एक दिमागी ़बीमारी है। यह बात शायद आप भी पहले से जानते, मानते हों लेकिन अब इसे एक शोध से साबित किया गया है। पैरानॉर्मल या असामान्य अनुभूतियों की कई कहानियां हैं और इनमें अक्सर अदृश्य भूत की बात की जाती है। ाqस्वस ़पेâडरल इंस्टीटयूट ऑ़फ टेक्नोलॉजी (ईपीए़फएल) की डॉक्टर जूलियो रोनिनि कहती हैं, ’’यह अनुभूति बहुत जीवंत होती है। वह किसी को महसूस कर सकते हैं लेकिन उसे देख नहीं सकते। हमेशा किसी के होने का अहसास रहता है।’’ सामान्यत: ऐसा चरम परिाqस्थतियों में रहने वालों के साथ होता है जैसे कि पर्वतारोही और खोजी। इसके अलावा कुछ न्यूरॉलॉजिकल दिक्कत वाले लोगों के साथ भी ऐसा हो सकता है। वह बताते हैं, ’’आश्चर्यजनक बात यह है कि वह बार-बार बताते हैं कि जो काम वह कर रहे हैं या किसी ़खास क्षण में जो मुद्राएं वह बना रहे हैं वहां ‘मौजूद ची़ज’ उसे दोहराती है। तो रोगी अगर बैठा हुआ है तो उसे महसूस होता है कि ‘मौजूद ची़ज’ भी बैठी हई है। अगर वह खड़ा है तो ‘मौजूद ची़ज’ भी खड़ी होगी।’’ शोधकर्ताओं ने १२ ऐसे लोगों के दिमाग को स्वैâन किया जिन्हें न्यूरोलॉजिकल विकार था और जिन्होंने भूत की मौजूदगी को अनुभव करने के बारे में बताया था। शोधकर्ताओं को पता चला कि इन मरी़जों के दिमा़ग के उस हिस्से में चोट लगी हुई थी, जिसका संबंध आत्मबोध, हरकत, और किसी स्थान में शरीर की ाqस्थति से होता है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि जब लोग भूतों की उपाqस्थति को अनुभव कहते हैं तब दिमाग भ्रमित हो रहा होता है। यह शरीर की ाqस्थति का गलत अनुमान लगाता है और ऐसा मानता है कि यह किसी और का है। डॉक्टर रोनिनि का कहना है ’’हमारा दिमाग किसी स्थान में हमारे शरीर को कई जगह रखता है। सामान्य परिाqस्थतियों में यह इनके आधार पर खुद की तैयार की हुई एक साqम्मलित छवि को जोड़कर रखता है। लेकिन जब बीमारी के चलते सिस्टम में गड़बड़ी होती है, या इस मामले में तो कभी-कभी यह अपने ही शरीर की एक और छवि बनाता है, जिसे वह ‘स्वयं’ के रूप में नहीं बाqल्क किसी और, ‘मौजूद ची़ज’ के रूप में करता है।’’शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके शोध के निश्कर्ष से सि़जोेनिया जैसी न्यूरोलॉजिकल ाqस्थतियों को समझने में बेहतर मदद मिल सकती है।