डंडा पड़ते ही शादी पक्की
बदलते समय के साथ-साथ अब यह मेला शहर की विरासत के साथ जुड़ गया है। यहां रात के समय हाथों में बेंत लिए महिलाएं और युवतियां अलग-अलग तरह के स्वांग रचकर सड़कों पर निकल जाती हैं। बेंत की पिटाई से बचने के लिए पुरूष और युवक भागते दौड़ते नजर आते हैं।
यह परंपरा लगभग सौ वर्ष पुरानी है। मारवाड में करीब 100 साल पहले ये मान्यता थी कि धींगा गवर के दर्शन पुरूष नहीं करते। क्योंकि तत्कालीन समय में ऐसा माना जाता था कि जो भी पुरूष धींगा गवर के दर्शन कर लेता था उसकी मृत्यु हो जाती थी। ऐसे में धींगा गवर की पूजा करने वाली सुहागिनें अपने हाथ में बेंत या डंडा ले कर आधी रात के बाद गवर के साथ निकलती थी।
वे पूरे रास्ते गीत गाती हुई और बेंत लेकर उसे फटकारती हुई चलती हैं। बताया जाता है कि महिलाएं डंडा फटकारती थी ताकि पुरूष सावधान हो जाए और गवर के दर्शन करने की बजाय किसी गली, घर या चबूतरी की ओट ले लेते थे। कालांतर में यह मान्यता स्थापित हुई कि जिस युवा पर बेंत की मार पड़ती उसका जल्दी ही विवाह हो जाता।