देखना है चंद्रमुखी और पारो का शहर!
चंद्रमुखी और पारो का शहर भागलपुर : शरतचंद्र ने भागलपुर की मिट्टी में गढ़ा था देवदास का कथा शिल्प। वैसे कहते हैं कि ये पात्र काल्पनिक नहीं थे। पारो संभवत: शरत की देवानंदपुर गांव की सहपाठिनी धीरू थीं तो चंद्रमुखी, भागलपुर के मंसूरगंज की मशहूर नर्तकी कालीदासी थी। यूं तो शरतचंद्र का जन्म हुगली जिले के छोटे से गांव देवानंदपुर में 15 सितंबर, 1876 ई. को हुआ था। वे माता भुवनेश्र्वरी देवी तथा पिता मोतीलाल की दूसरी संतान थे। पांच वर्ष की उम्र में भागलपुर निवासी नाना केदार नाथ गांगुली के यहां अध्ययन करने आये तो यहीं पर शिवदास बनर्जी के सान्निध्य में आने के बाद समाज के दकियानूसी विचारों के प्रति विद्रोह की भावना जागृत हुई। उनका दाखिला यहीं भागलपुर के दुर्गा चरण प्राइमरी स्कूल में कराया गया। यहीं उन्होंने शुरुआती शिक्षा के साथ शरारतें भी शुरू कीं। उन्होने तेज नारायण जुबिली कॉलेजिएट स्कूल से 1894 में मैट्रिक की शिक्षा प्राप्त की। शरत अपनी रचनाओं में ही नहीं, जीवन में भी रूढिय़ां तोड़ते दिखे। उन्होंने एक बेसहारा मोक्षदा नामक लड़की से शादी कर उसे हिरण्यमणि नाम दिया। अरविंद घोष के पिता कृष्णधन घोष सहित अन्य बंगाली लोगों द्वारा स्थापित गर्ल्स स्कूल का नाम बाद में बदलकर शरतचंद्र की पत्नी के नाम पर मोक्षदा गर्ल्स स्कूल रख दिया गया, जो आज भी गौरवशाली अतीत की याद दिला रहा है।