कोलकाता टाइम्स :
हर माता पिता अपने बच्चों का भला ही सोचते हैं। लेकिन कई बार बच्चों की लाइफ में ज्यादा दखल देना या उन्हें हर बात पर टोकना या बच्चों से ऐसी उम्मीद रखना कि वह वैसा ही करें जैसा आप उनसे उम्मीद रखते हैं तो यह आपकी सबसे बड़ी भूल है। क्योंकि इससे बच्चों में सुधार होने के बजाय वह लापरवाह और आत्मविश्वासहीन होते हैं।
न्यूक्लियर फेमिली में रहने वाले पेरेंट्स के सामने सबसे बड़ी समस्या यह होती हे कि स्कूल से लौटने के बाद पांच-छह घंटे बच्चे को घर में अकेला कैसे छोड़ा जाए? घर पहुंच कर बच्चे अपनी बोरियत मिटाने के लिए विडियो गेम्स या नेट सर्फिंग का सहारा लेते हैं। इसी वजह से आजकल बच्चों में इंटरनेट एडिक्शन तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। ऐसी ही आदतों से बचाने के मकसद से उन्हें कई तरह की रचनात्मक गतिविधियों में व्यस्त रखना पेरेंट्स की मजबूरी है। इसके अलावा आज के बच्चों में इतनी एनर्जी होती है कि वे पल भर के लिए भी खाली बैठना पसंद नहीं करते।
उनकी इसी एनर्जी को सही दिशा में चैनलाइज़ करने के लिए पेरेंट्स उन्हें उनकी रुचि से जुड़ी एक्टिविटीज़ में व्यस्त रखने की कोशिश करते हैं।’ इसके अलावा आजकल आत्मकेंद्रित महानगरीय जीवनशैली में बच्चों का समाजीकरण एक बड़ी समस्या है।
पढ़ाई से लेकर स्पोट्र्स तक हर फील्ड में अपने बच्चे को अव्वल नंबर पर देखने की चाहत एक हद तक स्वाभाविक है, लेकिन कुछ पेरेंट्स इसके लिए बच्चों पर बहुत ज्य़ादा दबाव डालते हैं। दरअसल वे अपने सभी अधूरे सपने बच्चों के माध्यम से पूरे करना चाहते हैं। अपनी इस प्रबल इच्छा के आगे वे बच्चे की पसंद-नापसंद या परेशानियों की भी परवाह नहीं करते।
अभिभावक अकसर यह भूल जाते हैं कि हर बच्चा दूसरे से अलग होता है। उसके व्यक्तित्व में खूबियों के साथ कुछ खामियों का होना भी स्वाभाविक है। बच्चों से बेशुमार उम्मीदें रखने वाले अभिभावकों को एक बार ईमानदारी से अपने व्यक्तित्व का भी विश्लेषण करना चाहिए। क्या वे खुद उतने ही काबिल हैं, जितना कि अपने बच्चे को बनाना चाहते हैं? माता-पिता चाहे जैसे भी हों बच्चे के लिए वे उसके रोल मॉडल होते हैं। पेरेंट्स के साथ उसका प्यार बिना किसी शर्त के होता है। ऐसे में अपने बच्चों की उपलब्धियों के आधार पर उनके बीच प्यार का बंटवारा कहां तक उचित है? कुछ अच्छा करने पर अपने बच्चे को शाबाशी ज़रूरी देनी चाहिए, लेकिन प्रतियोगिता में पिछड़ जाने पर उसके प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया अपनाना अमानवीय है।
याद रखें :
अपने संयत और प्यार भरे व्यवहार से उसे यह भरोसा दिलाएं कि आप उससे बहुत ज्य़ादा प्यार करते हैं और हर मुश्किल में उसके साथ होंगे।
टीनएजर्स को छोटी-छोटी बातों के लिए टोकना बंद कर दें।
केवल बच्चे की उपलब्धियों की नहीं, बल्कि नाकाम होने पर उसकी ईमानदार कोशिश की भी प्रशंसा ज़रूर करें।
भाई-बहनों या दोस्तों से कभी भी उसकी तुलना न करें।
उसे हर फील्ड में परफेक्ट बनाने की जल्दबाज़ी न दिखाएं। धैर्यपूर्वक उसकी रुचियों को पहचान कर उसे वही करने दें, जिसमें उसे सच्ची खुशी मिलती है।
यह ज़रूरी नहीं है कि हर बच्चा ओवर स्मार्ट या ऑलराउंडर हो। कुछ बच्चे जन्मजात रूप से शर्मीले होते हैं, पर इसके लिए उसे कोसना उचित नहीं है। उसके अन्य अच्छे गुणों को पहचान कर उनकी प्रशंसा करें। इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा। औसत दर्जे के छात्र भी आगे चलकर महान वैज्ञानिक या लेखक बन सकते हैं।
हमेशा उसके सामने उपदेश देने की मुद्रा में न रहें । बार-बार वही बातें सुनकर वह ऊबने लगेगा और आपसे दूर भागने की कोशिश करेगा।
उसके साथ रोज़ाना क्वॉलिटी टाइम बिताएं। उस दौरान उसकी $गलतियों पर रोक-टोक और पढ़ाई-लिखाई के बारे में कोई पूछताछ नहीं होनी चाहिए। उसके साथ बिलकुल सहज ढंग से हलकी-फुलकी बातें करें या कोई इंडोर गेम खेलें।