मामले से दोषियों की सजा सब होती है बस एक कील गाड़कर
बागी गांव जिला मुख्यालय से लगभग 100 किलोमीटर दूरी पर बसा है। देव कोटलू मारकंडेय की न्याय व्यवस्था बरबस ही एक अलग तरह का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है। यह न्याय व्यवस्था अपने आप में इस पहाड़ी प्रदेश में देव आस्था को मजबूत करती है और आज भी देवभूमि में लोग किस तरह से देवी देवताओं पर भरोसा करते है, कितनी गूढ़ आस्था इसमें रखते हैं, को मजबूत करती है। पूरे इलाके में जब कोई व्यक्ति किसी भी तरह से पीडि़त हो जाए वह यह समझे कि उसके साथ बेइंसाफी हुई है, अन्याय किया गया है। उसे किसी द्वारा तंग किया गया है, उस पर किसी ने नुकसान पहुंचाने के लिए जादू टोना कर दिया है, किसी ने उसका आर्थिक व शारीरिक अहित करने के लिए उसके खिलाफ कोई साजिश रची है, उसकी जमीन को दबा लिया गया है, उसकी संपत्ति को हड़प कर लिया गया है। उसके परिवार के किसी व्यक्ति के साथ झगड़ा किया गया है या किसी ने उसे व उसके परिवार को नुकसान पहुंचा कर अपने को कहीं छुपा लिया है तो मीलों दूर बालीचौकी पुलिस चौकी, औट थाना या फिर कुल्लू जिला के बंजार थाना जाकर रपट लिखवाने की जरूरत नहीं है, सीधे अपने गांव के मंदिर में जाएं और न्याय के लिए एक लोहे की कील मंदिर परिसर जो लकड़ी पत्थर का बना है, प्राचीन पहाड़ी शैली में है, गाड़ दीजिए। कील गाड़ते ही आपका मामला देवता की अदालत में दर्ज हो जाएगा।
गूर डोरे राम का कहना है कि सदियों से इस तरह की परंपरा चली आ रही है, लोगों को देवता के न्याय पर पूरा भरोसा है, कभी कोई मामला पुलिस या अदालत में नहीं गया, सब यही निपट जाते हैं, देवता के आदेश को सभी सिर माथे स्वीकार करके मानते हैं।
”यह अनूठी न्याय प्रणाली सबको मान्य है। इलाके के लोग ही नहीं बल्कि कुल्लू जिला के कई गांवों से भी लोग यहां न्याय के लिए आते हैं। मंदिर परिसर में अभी भी सैकड़ों लोहे की कीलें, छल्ले, कड़े आदि गड़े हुए हैं जो इस बात का गवाह हैं कि अब भी कई मामले यहां पर लंबित पड़े हैं, कील गाडऩे वाले यानी मामला दर्ज करवाने वालों को पूरा भरोसा है कि एक दिन अपराधी जरूरी देवता के दरबार में हाजिर होगा और अपना गुनाह कबूल करेगा। इससे मामला सुलट जाएगा