सावधान : करोड़ों की जान लेने के लिए दरवाजे पर खड़ी ये 10 बीमारियां
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कोलकाता टाइम्स :
डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) की आधिकारिक वेबसाइट पर 2019 में स्वास्थ्य संबंधित शीर्ष दस वैश्विक खतरों की सूची जारी की गई है जिसमें वायु प्रदूषण, टीकाकरण, बढ़ता मोटापा से लेकर इबोला वायरस इस साल खतरनाक बीमारी के बारे में चेताया गया है जो की दुनिया की बड़ी आबादी को अपनी चपटे में ले सकती है। जानिए कौन से हैं वो बड़े खतरे जिनको लेकर डब्लूएचओ ने चिंता जाहिर की है।
दुनियाभर में लोग गैरजरूरी और छोटी मोटी शारीरिक परेशानियों में एंटीबॉयोटिक दवाओं का सेवन करते हैं जिस वजह से शरीर पर इनका असर बंद हो जाता है। नतीजतन सामान्य संक्रमण और बीमारियां भी प्राणघातक बन जाती हैं। 2000 से 2015 के बीच विश्व में एंटीबॉयोटिक दवाओं की मांग और बिक्री 65 फीसद तक बढ़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक दवाएं बेअसर होने से 2050 तक एक करोड़ मौतें होंगी।
कई देशों में पर्याप्त प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं नहीं हैं। 2018 में जारी लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अपर्याप्त प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की वजह से हर साल लोग छोटी-छोटी बीमारियों की वजह से प्राथमिक स्वास्थय सेवा नहीं मिलने के वजह से 50 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है।
दुनिया में फैलने वाले फ्लू इंसानों के लिए बेहद घातक साबित हो रहे हैं. इनमें स्वाइन फ्लू, H1N1, नाक, गले और फेफेड़े के इन्फेक्शन आदि शामिल हैं। WHO ने माना है कि ऐसे फ्लू से बचाव सिर्फ वैक्सीन है।
दुनिया के सबसे खतरनाक रोगों में से एक इबोला सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक है। अफ्रीका के ग्रामीण क्षेत्रों से फैला इबोला मौजूदा समय में घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में लोगों को चपेट में ले चुका है। इबोला के अलावा, वैज्ञानिक संक्रमण, बुखार, जीका, निपाह वायरस को लेकर भी चेता चुके हैं।
दुनियाभर में वैक्सीन के इस्तेमाल की उदासीनता के चलते बड़ा खतरा पैदा हो रहा है। वैक्सीनेशन हर तरह की बीमारी से बचाव करने का सबसे आसान तरीका है। फ्रांस, यूक्रेन और यूरोप जैसे विकसित मुल्कों में लोग वैक्सीन को लेकर उदासीन हैं। हर साल वैक्सीन न लगा होने के कारण 20 से 30 लाख लोग अपनी जान गंवाते हैं।
मच्छरों जनित ये बीमारी पिछले दो दशकों से खतरा बनी हुई है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दुनिया की 40 फीसदी आबादी डेंगू के खतरे में हैं। सही समय पर इलाज न मिलने पर इनमें से 20 फीसदी की जान जा सकती है। हर साल दुनिया में 7.8 करोड़ से ज्यादा लोग डेंगू के शिकार बनते हैं।
दुनिया में सिर्फ बीमारियां नहीं बल्कि संकटग्रस्त इलाके भी WHO की नजर में किसी खतरे से कम नहीं हैं। दुनिया की 22 प्रतिशत आबादी यानी 1.6 अरब से अधिक लोग सूखा, अकाल, संघर्ष और प्राकृतिक आपदा जैसे संकटग्रस्त स्थानों पर रहने के लिए मजबूर है। प्राकृतिक आपदाओं और संकट से भागे लोगों की शरणार्थी शिविरों में फंसे लोग प्राथमिक चिकित्सा नहीं मिलने के कारण जान से हाथ धो बैठते है।
वायु प्रदूषण भी दुनिया के 10 बड़े खतरों में शुमार हो गए है। रिपोर्ट के मुताबिक सालाना 10 लाख लोग इस प्रदूषण के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं। जलवायु परिर्वतन जलवायु परिवर्तन की बात करें तो अनुमान के मुताबिक 2030 से 2050 के बीच 2.5 लाख से ज्यादा मौत सालाना बढ़ सकती हैं। लगभग 2.2 करोड़ लोग वर्तमान में एचआइवी का इलाज करा रहे हैं। 3.7 करोड़ लोग दुनियाभर में एचआइवी से पीड़ित हैं जिनमें से 30 लाख बच्चे और किशोर हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया का 2030 तक बच्चों और किशोरों के बीच एड्स को खत्म करने का प्रयास पटरी पर नहीं हैं।
कई देशों में पर्याप्त प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं नहीं हैं। 2018 में जारी लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अपर्याप्त प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की वजह से हर साल लोग छोटी-छोटी बीमारियों की वजह से प्राथमिक स्वास्थय सेवा नहीं मिलने के वजह से 50 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है।
दुनिया में फैलने वाले फ्लू इंसानों के लिए बेहद घातक साबित हो रहे हैं. इनमें स्वाइन फ्लू, H1N1, नाक, गले और फेफेड़े के इन्फेक्शन आदि शामिल हैं। WHO ने माना है कि ऐसे फ्लू से बचाव सिर्फ वैक्सीन है।
दुनिया के सबसे खतरनाक रोगों में से एक इबोला सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक है। अफ्रीका के ग्रामीण क्षेत्रों से फैला इबोला मौजूदा समय में घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में लोगों को चपेट में ले चुका है। इबोला के अलावा, वैज्ञानिक संक्रमण, बुखार, जीका, निपाह वायरस को लेकर भी चेता चुके हैं।
दुनियाभर में वैक्सीन के इस्तेमाल की उदासीनता के चलते बड़ा खतरा पैदा हो रहा है। वैक्सीनेशन हर तरह की बीमारी से बचाव करने का सबसे आसान तरीका है। फ्रांस, यूक्रेन और यूरोप जैसे विकसित मुल्कों में लोग वैक्सीन को लेकर उदासीन हैं। हर साल वैक्सीन न लगा होने के कारण 20 से 30 लाख लोग अपनी जान गंवाते हैं।
मच्छरों जनित ये बीमारी पिछले दो दशकों से खतरा बनी हुई है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दुनिया की 40 फीसदी आबादी डेंगू के खतरे में हैं। सही समय पर इलाज न मिलने पर इनमें से 20 फीसदी की जान जा सकती है। हर साल दुनिया में 7.8 करोड़ से ज्यादा लोग डेंगू के शिकार बनते हैं।
दुनिया में सिर्फ बीमारियां नहीं बल्कि संकटग्रस्त इलाके भी WHO की नजर में किसी खतरे से कम नहीं हैं। दुनिया की 22 प्रतिशत आबादी यानी 1.6 अरब से अधिक लोग सूखा, अकाल, संघर्ष और प्राकृतिक आपदा जैसे संकटग्रस्त स्थानों पर रहने के लिए मजबूर है। प्राकृतिक आपदाओं और संकट से भागे लोगों की शरणार्थी शिविरों में फंसे लोग प्राथमिक चिकित्सा नहीं मिलने के कारण जान से हाथ धो बैठते है।
वायु प्रदूषण भी दुनिया के 10 बड़े खतरों में शुमार हो गए है। रिपोर्ट के मुताबिक सालाना 10 लाख लोग इस प्रदूषण के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं। जलवायु परिर्वतन जलवायु परिवर्तन की बात करें तो अनुमान के मुताबिक 2030 से 2050 के बीच 2.5 लाख से ज्यादा मौत सालाना बढ़ सकती हैं। लगभग 2.2 करोड़ लोग वर्तमान में एचआइवी का इलाज करा रहे हैं। 3.7 करोड़ लोग दुनियाभर में एचआइवी से पीड़ित हैं जिनमें से 30 लाख बच्चे और किशोर हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया का 2030 तक बच्चों और किशोरों के बीच एड्स को खत्म करने का प्रयास पटरी पर नहीं हैं।