इस मंदिर में राम नहीं होती है सीता की पूजा
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कोलकाता टाइम्स :
रामचरितमानस के अनुसार भगवान राम और माता सीता के दो पुत्र लव-कुश थे जिनका जन्म वाल्मीकि आश्रम में हुआ था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वाल्मीकि के जिस आश्रम कहां था अगर नहीं तो हम आपको बताते है वह मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले के मुंगावली तहसील के करीला गांव में था इसे करीला माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार यहीं लव और कुश का जन्म हुआ था। इस मंदिर में सीता जी की तो पूजा की जाती है लेकिन भगवान राम की पूजा नहीं होती। यहां उनकी प्रतिमा भी स्थापित नहीं की गई है। रामनवमी के अवसर वर जानते हैं इस मंदिर के बारे में…
यहां प्रचलित मान्यताओं के अनुसार रंगपंचमी के मौके पर ही लव-कुश का जन्म हुआ था। तभी से रंगपंचमीउ पर लव-कुश के जन्म की खुशियां मनाई जाती है।
मेला लगता है बधाई गीत गाए जाते हैं और बुंदेलखंड का पारंपरिक राई नृत्य श्रद्धाभाव से कराया जाता है।
माना जाता है कि लव-कुश के जन्म के समय बधाई गीत गाए गए थे और स्वर्ग से अप्सराओं ने तक उतरकर नृत्य किया था। इस अवासर पर बेड़िया जाति की हजारों नृत्यांगनाओं ने भी नृत्य किया था।
मंदिर में यह मान्यता प्रचलित है कि यदि मंदिर में जो भी मन्नत मांगी जाती है वह पूरी हो जाती है। इसके बाद लोग श्रद्धा के साथ यहां राई और बधाई नृत्य करवाते हैं।इसके लिए बेड़िया जाति की महिलाएं करीला मंदिर में नृत्य करती हैं। इस मंदिर में ही माता जानकी के साथ ही वाल्मीकि और लव-कुश की भी प्रतिमाएं हैं।
यह कथा है प्रचलित
इस जगह के बारे में स्थानीय लोगों के बीच एक कथा जानकी मंदिर के बारे में 200 वर्षों पुरानी एक कथा आज भी प्रचलित है।
यहां के लोगों का मानना है कि विदिशा जिले के ग्राम दीपनाखेड़ा के महंत तपसी महाराज को एक रात सपना आया कि करीला ग्राम में एक टीले पर स्थित आश्रम है, जिसमें माता जानकी और लवकुश कुछ समय तक रहे थे।
यह वाल्मीकि आश्रम वीरान पड़ा है, जिसे जागृत करो। दूसरे दिन सुबह ही महाराज ने करीला पहाड़ी पर देखा तो वहां एक वीरान आश्रम था।
वे खुद ही साफ-सफाई में जुट गए और उन्हें देख सैकड़ों लोग इसकी सफाई व्यवस्था में जुट गए। देखते ही देखते आश्रम साफ हो गया।