November 23, 2024     Select Language
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सुकून के पल बिताने हों जरूर जाएँ इस खूबसूरत जंगलों के मेला में 

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कोलकाता टाइम्स : 

झारखंड का यह इलाका आदिवासी बहुत है और अधिकतर हिस्सों में जंगलों का फैलाव है। साल, सागवान, सखुआ और बांस के घने जंगल हैं यहां। यहां की स्थानीय भाषा में नेतरहाट का मतलब है, बांस का बाजार। यहां खासतौर से हिंदी और संथाली बोली जाती है। इस जगह की खोज में गरमी से परेशान अंग्रेज अफसरों की भूमिका रही है। भारत की ज्यादातर पहाड़ी जगहें इन अफसरों ने अपनी सहूलियत के लिए तलाशी और संवारीं अन्यथा जंगलों के बीच यह खूबसूरत मोती डिब्बे में बंद ही रह जाता। घूमने के लिए यहां कई वॉटर फॉल्स के अलावा सनराइज़ और सनसेट प्वॉइंट भी हैं।

इस पहाड़ी जगह का सबसे बड़ा आकर्षण यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त है। वैसे तो ठहरने की कई जगहों से इसे देखा जा सकता है लेकिन कुछ जगहें इसके लिए खासी मशहूर हैं, जैसे कि टूरिस्ट बंगला, होटल प्रभात विहार के सामने की जगह। नेतरहाट बसस्टॉप से एक किमी की दूरी पर यह स्थित है। घने पेड़ों के बीच से लालिमा पूरे उन्माद में जब आकाश में सिंदूरी आभा बिखेरती है तो आंखें विस्मित हो जाती हैं।

अपर घाघरी फॉल : यहां से 4 किमी की दूरी पर अपर घाघरी फॉल है। चट्टानों के सीने को चीरता पानी पूरे उन्माद में गर्जन करता है। हालांकि यह झरना छोटा है लेकिन बहुत खूबसूरत है। पर्यटक लोअर और अपर घाघरी फॉल देखने जरूर जाते हैं। यहां पहुंचने का रास्ता गांव के बीच से होकर गुजरता है और पक्की सड़क भी नहीं है, इसलिए आरामदायक जूते पहनकर पैदल चलने से गुरेज न रखें। बेहतर होगा कि स्थानीय गांव वाले से रास्ता पूछ लें। कई जगह बोर्ड पर यह भी लिखा मिलता है कि यहां वाई-फाई कनेक्शन नहीं बल्कि प्रकृति से सीधा संपर्क अवेलेबल है। इस खूबसूरत संबंध को साधने में वाई-फाई की सुध किसे रहती है पर ध्यान रखने लायक बात यह है कि रास्ते के लिए इंटरनेट का आप भरोसा नहीं कर सकते।

लोअर घाघरी फॉल: घने जंगलों के बीच से गुजरते हुए जगह-जगह अंधेरा गहराने लगता है। चिड़ियों की चहचहाहट, झींगुरों का सुरीला आलाप रास्ते भर साथी बना रहता है। तभी पानी के गिरने की आवाज सुनाई देने लगती है। ऐसा लगता है कि कहीं कोई पानी का झरना है। अंदाजा सही है कि यहां लोअर घाघरी फॉल है जहां 320 फीट की ऊंचाई से पानी गिरता है। झरने के आसपास प्रकृति और ईश्वरीय सत्ता से एकाकार होने की चेष्टा करें। चट्टानों पर सावधानी से पैर जमाकर पानी की ठंडक को महसूस करने का एहसास खुशी से भर देता है।

मैग्नोलिया सनसेट प्वॉइट :  सपींले रास्ते पर टायर रगड़ती गाड़ी से नेतरहाट से करीब 10 किमी की दूरी तय कर मैग्नोलिया प्वॉइट पहुंचते हैं। इस खूबसूरत जगह के साथ एक प्रेम कहानी जुड़ी है। ऐसी कहानी, जहां प्रेमी युगल के जीवन का सूर्यास्त हो जाता है। अंग्रेज अधिकारी की बेटी मैग्नोलिया को चरवाहे से प्यार हो जाता है। बांसुरी की धुन और प्रकृति की हसीन वादियों के बीच प्रेम गहराता है पर सामाजिक मान्यता इसे नहीं मिलती और चरवाहे की हत्या हो जाती है। शोक-संतप्त मैग्नोलिया पहाड़ की चोटी पर जाकर घोड़े की पीठ से कूद कर जान दे देती है। इस कहानी को यहां मूर्तियों से दिखाया गया है। अक्सर पुरानी कहानियों का अंत दुख भरा होता है, शायद इसलिए ये अभिशप्त प्रेम कहानियां बरसों तक जनसाधारण के बीच जीवित रहती हैं।

सीधा-सादा जीवन :  प्रकृति से भरपूर आशीर्वाद मिला है इस जगह को, जो तमाम आधुनिकीकरण के बावजूद अपने मूल स्वरूप में कायम है। सीधे-साधे आदिवासी जंगलों को अपनी मां समझते हैं और जीविका का अधिकार सामान वहीं से जुटाते हैं। रास्ते में कितने गांव हैं, जिनमें कच्चे-पक्के घर देखने को मिलेंगे और घर के बाहर बंधे जानवर भी। ये लोग स्वभाव से कम बोलने वाले और अपनी स्थितियों में संतुष्ट रहते हैं। घूमने की जगह के तौर पर भले ही यह जगह ज्यादा मशहूर नहीं है पर इतनी सुंदर है कि यहां से लौटने के बाद भी आप प्रकृति के मोहपाश में जकड़े रह जाते हैं।

कब आएं : मौसम यहां हमेशा खुशनुमा रहता है और बारिश भी खूब होती है। यहां के पहाड़ पुराने हैं इसलिए भूस्खलन का डर नहीं रहता। साल के किसी भी समय इस जगह आने का प्लान बनाया जा सकता है।

कैसे पहुंचे :  रेल और हवाई मार्ग द्वारा रांची सभी जगहों से जुड़ा हुआ है, इसलिए बड़ी आसानी से यहां पहुंचा जा सकता है। रांची पहुंचकर सड़क मार्ग से 150 किमी की दूरी तय की जा सकती है। रास्ते भर प्रकृति का इतना सुंदर फैलाव और विस्तार है कि मंत्रमुग्ध आप आगे बढ़ते जाते हैं। रास्ते में साल के पेड़ दूर-दूर तक साथ चलते हैं। साथ में सखुआ और सागवान के भी जंगल है। इस इलाके में वन संपदा का बाहुल्य है। जीव-जन्तुओं की भी कमी नहीं है लेकिन शर्मीले-लजीले जानवर कम ही सामने आते हैं।

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