झूठ बोलने या कोई और भी गलती होने पर कान पकड़ने के पीछे है यह राज
कोलकाता टाइम्स :
गौतम, वसिष्ठ, आपस्तंब धर्मसूत्रों और पाराशर स्मृति सहित अन्य ग्रंथों में ज्ञान की कई बातें बताई गई हैं। इन ग्रंथों में रहन-सहन के नियम और तरीकों के बारे में बताया गया है। इन ग्रंथों के अनुसार, हमारे शरीर में पंचतत्वों के अलग-अलग प्रतिनिधि अंग माने गए हैं जैसे- नाक भूमि का, जीभ जल का, आंख अग्नि का, त्वचा वायु का और कान आकाश का प्रतिनिधि अंग। विभिन्न कारणों से शेष सभी तत्व अपवित्र हो जाते हैं, लेकिन आकाश कभी अपवित्र नहीं होता। इसलिए ग्रंथों में दाहिने कान को अधिक पवित्र माना जाता है।
1. मनु स्मृति के अनुसार, मनुष्य के नाभि के ऊपर का शरीर पवित्र है और उसके नीचे का शरीर मल-मूत्र धारण करने की वजह से अपवित्र माना गया है। यही कारण है कि शौच करते समय यज्ञोपवित (जनेऊ) को दाहिने कान पर लपेटा जाता है क्योंकि दायां कान, बाएं कान की अपेक्षा ज्यादा पवित्र माना गया है। इसलिए जब कोई व्यक्ति दीक्षा लेता है तो गुरु उसे दाहिने कान में ही गुप्त मंत्र बताते हैं, यही कारण है कि दाएं कान को बाएं की अपेक्षा ज्यादा पवित्र माना गया है।
2. गोभिल गृह्यसूत्र के अनुसार, मनुष्य के दाएं कान में वायु, चंद्रमा, इंद्र, अग्नि, मित्र तथा वरुण देवता निवास करते हैं। इसलिए इस कान को अधिक पवित्र माना गया है।
गोभिल गृह्यसूत्र का श्लोक
मरुत: सोम इंद्राग्नि मित्रावरिणौ तथैव च।
एते सर्वे च विप्रस्य श्रोत्रे तिष्टन्ति दक्षिणै।।
3. पराशर स्मृति के बारहवें अध्याय के 19 वें श्लोक में बताया गया है कि के छींकने, थूकने, दांत के जूठे होने और मुंह से झूठी बात निकलने पर दाहिने कान का स्पर्श करना चाहिए। इससे मनुष्य की शुद्धि हो जाती है।