रंग से ऐसा परहेज के पूरा गांव कभी नहीं रंगते घर, खुशियां भी बिना डेकोरेशन के
कोलकाता टाइम्स :
उज्जैन के आलोट तहसील में कछालिया गांव में ग्रामीण मकान निर्माण पर लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी रंगाई-पुताई नहीं कराते हैं। मात्र सरकारी भवन और मंदिरों पर ही रंगरोगन होता है। यहां तक की शादी समारोह या अन्य कोई आयोजन में भी डेकोरेशन नहीं किया जाता है।
कछालिया गांव में यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है। इस परंपरा को बुजुर्गों से लेकर बच्चे तक निभा रहे है। कछालिया की जनसंख्या 1400 है। यहां 200 मकान है। एक भी मकान पर रंगाई-पुताई नहीं की गई है। मात्र गेरू रंग का प्राइमर घर पर तैयार कर दरवाजों पर लगाया जाता है।
काले रंग के कपड़े और जूते भी नहीं पहनते लोग : गांव में काले रंग के इस्तेमाल पर पूर्णत: प्रतिबंध है। यहां ग्रामीण काले रंग के कपड़े, जूते नहीं पहनते हैं। यहां तक की मौजे तक पहनने पर भी रोक है। शादी समारोह में घर विवाह के दौरान माता पूजन पर भी रंगों का उपयोग नहीं करते हैं, सिर्फ देवी-देवताओं की कलाकृति चिपका कर पूजन किया जाता है। इसी तरह दीपावली पर पशुओं के सिंग रंगने की जगह गेरू रंग का प्राइमर किया जाता है।
मंदिर के सामने से कोई घोड़ी पर बैठकर नहीं निकलता
75 साल के मंदिर के पुजारी रतनपुरी गोस्वामी ने बताया कि गांव में कालेश्वर भगवान का मंदिर है। भगवान कालेश्वर में ग्रामीणों की आस्था है, इसलिए मंदिर को छोड़कर कोई भी अपने निजी मकान पर रंगरोगन नहीं करता है। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है, लेकिन इसके पीछे मान्यता क्या है, यह किसी को नहीं पता है।
दो-तीन बार जब परंपरा को तोड़ा गया तो हादसा हुआ। कालेश्वर भगवान के मंदिर के सामने से कोई घोड़ी पर बैठकर नहीं निकलता है, मंदिर के पीछे से निकल जाता है।