November 23, 2024     Select Language
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ये वो फल है जो चमका सकता है किस्मत, चीन वाले भी हो चुके हैं मालामाल!

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कोलकाता टाइम्स :

मारा देश कई वनस्पतियों से भरा हुआ है जिसमें कुछ अनमोल हैं। ऐसा ही एक फल है जो किस्मत बदल सकता है और मालामाल भी कर सकते है। अपने खास भूगोल और आबो हवा के कारण उत्तराखंड में कई दुर्लभ वनस्पतियां मौजूद हैं, जिनका किसी न किसी रूप में औषधीय महत्व भी है।

अमेस भी ऐसी ही एक वनस्पति है। दिलचस्प बात ये है कि इस वनस्पति को अब तक मामूली झाड़ी ही समझा जाता था। लेकिन जड़ी बूटी शोध संस्थान गोपेश्वर के वैज्ञानिकों ने इसकी पहचान एक ऐसी औषधि के रूप में की है जो पहाड़ी इलाकों में आजीविका के क्षेत्र में क्रांति ला सकती है। इसे वनस्पति विज्ञान की भाषा में हिप्पोफी (Hippophae) कहा जाता है और चीन में इस वनस्पति पर लगने वाले फलों से करीब पांच हजार उत्पाद बनाए जाते हैं।

विटामिन से भरपूर होने के कारण इसका उच्च गुणवत्ता वाला स्पोर्ट्स ड्रिंक भी कई देशों में बनाया जा रहा है। भारत में उत्तराखंड में ही इसकी दो प्रजातियां पाई जाती हैं। जिसे यहां अमेस कहा जाता है। समुद्र तल से करीब ढाई हजार मीटर की ऊंचाई पर चमोली, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जिले में यह बहुतायत में उगती है। लेकिन उपयोग के नाम पर सिर्फ इसकी टहनियों को आलू या सेब के बगीचों में बाड़ लगाने के लिए ही किया जाता रहा है।

जड़ी बूटी शोध संस्थान के वैज्ञानिक डॅा.विजय प्रसाद के मुताबिक अमेस का फल अपनी खूबियों के कारण ग्रामीणों के लिए आजीविका का बड़ा जरिया बन सकता है। यह वनस्पति जमीन से तीन फीट से सात फीट तक ऊंची और पतली टहनियों और घनी पत्तियों वाली होती हैं।

पत्तियों के बीच अमेस का फल जंगली बेर की तरह दिखता है और पकने पर नारंगी और लाल रंग का हो जाता है।इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन और एंटी कैंसर तत्व शामिल हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्र में होने के कारण इसका औषधीय महत्व भी बढ़ जाता है।

अमेस की पहचान होने के बाद उद्यान विभाग ने जड़ी बूटी शोध संस्थान के साथ मिलकर इसके प्रसंस्करण की प्रक्रिया शुरू कर दी है। जिसके तहत उत्तरकाशी जिले के नौगंव समेत चमोली व पिथौरागढ़ जिले में महिला समूहों को इस काम से जोड़ा गया है। अमेस के कृषिकरण के साथ ही ग्रामीणों को तकनीकी प्रशिक्षण और मशीनें उपलब्ध करवाकर अमेस के पांच तरह के उत्पाद बनाए जा रहे हैं।

जिसमें कैंसर रोधी दवा समेत, जेली और चटनी और जूस भी शामिल है। राज्य के उद्यान निदेशक डॉ.विजय सिंह नेगी बताते हैं कि अमेस के प्रसंस्करण का बीस लाख रुपए का प्रोजेक्ट शुरू कर दिया गया है। उत्पाद तैयार करने के साथ ही विभाग देश भर में इसकी मार्केटिंग भी व्यवस्था कर रहा है।

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