रोंगटे खड़े खड़े कर देगा तालबेहट में लगे कलंक की दास्तान
कोलकाता टाइम्स :
रहस्यमयी जगहों के बारे में भी आपने सुना ही होगा। जहां जाने से लोग कतराते है। जी हाँ ललितपुर के पास एक गांव ऐसा है जहां पिछले 150 सालों में कभी त्यौहार नहीं मनाया गया। ऐसा नहीं कि यहां हिंदू नहीं रहते। लगभग 150 साल पहले यहां ऐसी दर्दनाक घटना हुई थी जिसका असर आज तक है। इस किले के दरवाजे पर 7 लड़कियों की पेंटिंग बनी है। हर साल गांव की महिलाएं इन लड़कियों की पूजा करती हैं। आइए हम आपको बताते है तालबेहट में लगे कलंक के बारे में –
सन् 1850 के आसपास मर्दन सिंह ललितपुर के बानपुर के राजा थे।वे तालबेहट भी आते-जाते रहते थे, इसलिए ललितपुर के तालबेहट में उन्होंने एक महल बनवाया था। यहां उनके पिता प्रहलाद रहा करते थे।
राजा मर्दन सिंह ने 1857 की क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया था। उन्हें एक योद्धा और क्रांतिवीर के रूप में याद किया जाता है। एक ओर जहां मर्दन सिंह का नाम सम्मान से लिया जाता है, वहीं उनके पिता प्रहलाद सिंह ने बुंदेलखंड को अपनी हरकत से कलंकित किया था। इतिहासकारों के मुताबिक वह अक्षय तृतीया का दिन था। तब इस त्योहार पर नेग मांगने की रस्म होती थी। इसी रस्म को पूरा करने के लिए तालबेहट राज्य की 7 लड़कियां राजा मर्दन सिंह के इस किले में नेग मांगने गईं थीं। तब राजा के पिता प्रहलाद किले में अकेले थे। लड़कियों की खूबसूरती देखकर उनकी नीयत खराब हो गई और उन्होंने इन सातों को हवस का शिकार बना लिया। लड़कियां राजशाही महल में बेबस थीं। घटना से आहत लड़कियों ने महल के बुर्ज से कूदकर जान दे दी थी।
यहां के स्थानीय निवासियों के मुताबिक आज भी उन 7 पीड़ित लड़कियों की आत्माओं की चीखें तालबेहट किले में सुनाई देती हैं।यह घटना अक्षय तृतीया के दिन हुई थी, इसलिए आज भी यहां यह त्यौहार नहीं मनाया जाता। तालबेहट निवासी सुरेंद्र सुडेले बताते हैं, “यह किला अशुभ माना जाता है। देखरेख के अभाव में यह खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। कई बार लड़कियों की चीखने की आवास महसूस की जा चुकी है। इसलिए रात ही नहीं, बल्कि दिन में भी यहां लोग जाना ठीक नहीं समझते।”
इतने साल बीतने के बाद आज भी ललितपुर में अक्षय तृतीया के दिन को अशुभ माना जाता है। स्थानीय निवासियों के अनुसार, इस दिन महिलाएं किले के मुख्य द्वार पर बने सातों लड़कियों के चित्र की पूजा-अर्चना करने जाती हैं।