ट्रैफ़िक नियम तोड़ने पर फ़िल्म देखने की सज़ा
कोलकाता टाइम्स :
अगर ट्रैफ़िक के नियम तोड़ने पर आपको जुर्माना भरने के बजाय दो घंटे फ़िल्म देखने की सज़ा मिले तो कैसा होगा? जिन्होंने अब तक ये सज़ा भुगती है, उन्होंने कम से कम ट्रैफ़िक के नियम तोड़ कर भविष्य में ऐसी फ़िल्म देखने से तो तौबा कर ली है। असल में ट्रैफ़िक के नियम तोड़ने वालों से परेशान छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के यातायात विभाग ने ऐसे लोगों से निपटने का एक अनूठा तरीका अपनाया है। राजधानी रायपुर में अब ट्रैफ़िक के नियम तोड़ने वालों को पूरे दो घंटे तक थाने में बैठकर यातायात के नियमों पर आधारित फ़िल्म देखनी पड़ रही है।
यातायात पुलिस अपने इस फ़िल्म अभियान से खुश है. आम जनता भी मान रही है कि ये अभियान अगर ईमानदारी से चले तो ट्रैफ़िक नियमों की अनदेखी करने वाले लोग ज़रुर सुधर जायेंगे। लगभग दस साल पहले छत्तीसगढ़ की राजधानी बने रायपुर में ट्रैफ़िक नियमों के पालन करने को लेकर आम जनता में जागरुकता तो बढ़ी है लेकिन नियम तोड़ने वाले लोगों की संख्या में भी कोई कमी नहीं आई है। साल 2008 में यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाले 54 हज़ार से अधिक लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई और उनसे जुर्माना वसूला गया. यह आँकड़ा 2009 में भी कम नहीं हुआ।
साल 2010 में तो केवल जुलाई तक लगभग 55 हज़ार लोगों के खिलाफ यातायात के नियम तोड़ने के आरोप में कार्रवाई की जा चुकी थी. ट्रैफ़िक नियम तोड़ने वालों के खिलाफ जब चालान और जुर्माने से भी बात नहीं बनी तो यातायात पुलिस ने शहर के कुछ बुद्धिजीवियों और मनोवैज्ञानिकों से बात की. बैठकों के दौर चले और फिर शुरु हुआ ट्रैफ़िक नियम तोड़ने वालों को थाने में जबरदस्ती दो घंटे तक बैठाकर यातायात पर आधारित फ़िल्म दिखाने का यह अनूठा प्रयोग. इसके लिए दिल्ली समेत अलग-अलग राज्यों से यातायात नियमों को लेकर बनाई गई फ़िल्में मंगाई गईं. रायपुर के ट्रैफ़िक डीएसपी बलराम हिरवानी बताते हैं, “इसकी प्रेरणा हमें आंध्र प्रदेश से मिली, जहाँ इससे मिलती-जुलती पहल की गई थी. रायपुर में हमें इसके सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं और पहले ही दिन कोई 150 लोगों को यह फ़िल्म दिखाई गई.” उनका मानना है कि अगर कोई व्यक्ति किसी जरुरी काम से जा रहा हो और ट्रैफ़िक के नियम तोड़ने की सज़ा के तौर पर उसे पूरे दो घंटे थाने में बैठा कर फ़िल्म दिखाई जाये तो कम से कम अपना समय बचाने के लिये भविष्य में वह ट्रैफ़िक नियमों को तोड़ने से बाज आएगा।
यह सज़ा किसी भी चालान, जुर्माने और सज़ा से भारी है और मुझे तो कम से कम पूरी ज़िंदगी याद रहेगी। “यातायात पुलिस से पकड़े जाने पर अधिकाँश लोग दो घंटे तक फ़िल्म देखने के बजाय जुर्माना देना बेहतर समझते हैं लेकिन यातायात पुलिस इस बात के लिए तैयार नहीं होती। फ़िल्म देखने वाले कक्ष में बैठे पारस पाठक का मानना है कि अगर इस योजना को ईमानदारी से लागू किया जाये तो लोगों में इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा लेकिन पारस मानते हैं कि इस तरह की योजनाएँ लंबे समय तक शायद ही चल पाएँ।