चांदी है सबसे पवित्र धातु, जानते हैं क्यों ?
कोलकाता टाइम्स :
चांदी को सबसे पवित्र और शुद्ध धातु का दर्जा प्राप्त है। रस शास्त्र के अनेक ग्रंथों में चांदी को सोने से भी अधिक शुद्ध धातु का माना गया है। यही कारण है कि पूजा के बर्तन, नैवेद्य पात्र आदि भी चांदी के बनाए जाते हैं। आयुर्वेद के ग्रंथों में भी चांदी के अनेक प्रयोग बताए गए हैं जिनसे तन और मन को स्वस्थ रखा जा सकता है।
हिंदू पूजा पद्धति और ज्योतिष शास्त्र हिंदू पूजा पद्धति और ज्योतिष शास्त्र में चांदी को पवित्र और शुद्ध धातु माना गया है। चांदी का संबंध चंद्र और शुक्र से है। घर में चांदी रखना शुभ होता है। यह सौभाग्य की वृद्धि करता है। इसीलिए महिलाएं पायल और बिछिया चांदी की पहनती हैं। आइए जानते हैं चांदी के जरिए कैसे आप अपने जीवन को सुखी और समृद्धशाली बना सकते हैं।
चंद्र का विशेष अधिकार चांदी पर चंद्र का विशेष अधिकार होता है। इसलिए जिस भी जातक को अधिक क्रोध आता है उसे चांदी की चेन में चंद्रमा का पेंडेंट बनाकर गले में पहना दें। चांदी मानसिक मजबूती प्रदान करती है। इसे धारण करने से मन एकाग्र और शांत होता है। घर में पूजा के बर्तन चांदी के होना अत्यंत शुभ होता है। इनमें चांदी के दीपक, आचमनी, लोटा, घंटी होना शुभ रहता है। इससे वैभवता, संपन्नता आती है। भगवान को नैवेद्य भी चांदी के बर्तन में लगाना चाहिए। संभव हो तो घर में चांदी की लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा अवश्य होना चाहिए। इससे आर्थिक समृद्धि बनी रहती है। चांदी का चौकोर टुकड़ा पर्स में हमेशा रखने से जेब में कभी खाली नहीं रहती। जन्मकुंडली में चंद्र पीड़ा दे रहा हो तो चांदी का कोई आभूषण धारण करना चाहिए। बच्चों के हकलाने, तुतलाने की समस्या हो या आवाज स्पष्ट नहीं हो तो गले में चांदी धारण करवाने से गला और आवाज साफ हो जाती है। चांदी धारण करने से शुक्र भी मजबूत होता है।
क्यों है चांदी सबसे शुद्ध वैज्ञानिक शोध कहते हैं कि चांदी एक ऐसी धातु है जो सौ फीसदी कीटाणुरहित होती है। इसमें किसी भी प्रकार का बैक्टीरिया नहीं पनप सकता। इसलिए इसमें रखा पानी शुद्ध हो जाता है। चांदी की शुद्धता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सर्जिकल उपकरणों के अलावा मनुष्य के शरीर के भीतर भी हड्डियों में प्लेट्स आदि लगाने के लिए चांदी मिश्रित धातुओं का प्रयोग किया जाता है। चंद्रमा की धातु होने के कारण क्रोध, आवेश और उग्रता को समाप्त करती है।