कहीं आपभी इस जीन के चक्कर में ना बन जाये दिल के रोगी
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कोलकाता टाइम्स :
वैज्ञानिकों का कहना है कि एक जीन में होने वाले परिवर्तन की वजह से भारतीय उपमहाद्वीप में लोगों को हृदय रोग का ख़तरा बहुत बढ़ रहा है.उनका कहना है कि इस इलाक़े के कोई चार फ़ीसदी लोगों में ऐसा परिवर्तन देखा गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अधेड़ उम्र के लोगों में यदि यह जीन मौजूद हुआ तो उन्हें हृदय रोग का ख़तरा 90 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। अब वैज्ञानिक ऐसी विधि ढूँढ़ने का प्रयास कर रहे हैं जिससे कि किसी भी व्यक्ति को पता चल सके कि यह जीन परिवर्तन उनके भीतर हो रहा है या नहीं। यह खोज वेलकम ट्रस्ट संगर इंस्टिट्यूट ने की है जिसकी शाखाएँ हैदराबाद और इंग्लैंड में हैं. आमतौर पर हृदय रोग कई कारणों से होता है जिसमें जीवनशैली शामिल है।
वैज्ञानिक मानते हैं कि अपने पूर्वजों से विरासत में मिली जीनों के कारण भी ख़तरा बढ़ता है। लेकिन दिल के एक प्रोटीन जीन में होने वाले परिवर्तन का असर व्यापक दिखता है क्योंकि यह बहुत बड़ी संख्या में लोगों के भीतर हो रहा है। भारत-पाकिस्तान और श्रीलंका में वैज्ञानिकों का कहना है कि आश्चर्य की बात यह है कि ऐसा परिवर्तन एक ही इलाक़े में दिखाई दे रहा है। इस शोध में शामिल क्रिस टाइलर-स्मिथ ने बताया कि भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका से इस संबंध में आंकड़े जुटाए गए और पाया गया कि सभी देशों में इसका असर लगभग एक जैसा ही है।
उनका कहना है कि भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिणी हिस्से में इसका असर उत्तर की तुलना में कुछ ज़्यादा है लेकिन पूर्वोत्तर के कुछ इलाक़ों में इसका असर बिल्कुल भी देखने में नहीं आया। उल्लेखनीय है कि इस पूरे क्षेत्र में हृदय रोग तेज़ी से बढ़ता जा रहा है.एक अनुमान है कि वर्ष 2010 तक दुनिया के 60 प्रतिशत हृदय रोगी भारत में होंगे। इस बीमारी के इतने तेज़ी से बढ़ने के कारणों में जीवनशैली में परिवर्तन, व्यायाम की कमी और खानपान है.लेकिन इसके पीछे इस जीन में होने वाले परिवर्तन की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।