मोबाइल पर बजी फिर ख़तरे की घंटी
कोलकाता टाइम्स :
पिट्सबर्ग कैंसर संस्थान के निदेशक रॉनल्ड हरब्रेमैन ने कहा कि मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करने वालों को किसी निर्णायक अध्ययन का इंतज़ार नहीं करना चाहिए बल्कि उन्हें अभी से एहतियात बरतनी चाहिए। उन्होंने कहा कि केवल बहुत ज़रूरी होने पर ही मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करना चाहिए, मोबाइल को सिर से जितना दूर हो सके उतना दूर रखना चाहिए। किसी भी प्रमुख अकादमिक अध्ययन में इस बात की पुष्टि पक्के तौर पर नहीं हुई है कि मोबाइल फ़ोन के इस्तेमाल से ब्रेन कैंसर होने की आशंका है। डॉक्टर हरब्रेमैन ने कहा कि उनकी चेतावनी का आधार कुछ अप्रकाशित आँकड़ों से मिले निष्कर्ष हैं। उन्होंने कहा, “हमें किसी प्रामाणिक अध्ययन का इंतज़ार नहीं करना चाहिए, क्योंकि उपचार से बचाव बेहतर होता है”। डॉक्टर हरब्रेमैन ने कहा, “मेरा यह मानना है कि आंकड़े इतने गंभीर हैं कि लोगों को मोबाइल फ़ोन के इस्तेमाल के संबंध में एहतियात की सलाह दी जाए”। डॉक्टर हरब्रेमैन की ओर से तीन हज़ार कर्मतारियों को भेजी गई चेतावनी में कहा गया है कि “बच्चों का दिमाग विकसित हो रहा होता है, इसलिए उन्हें ख़ास तौर पर बचाना चाहिए”। ब्रिटेन में छह साल तक चले एक अध्ययन के अनुसार मोबाइल फ़ोन के कम इस्तेमाल से दिमाग और कोशिकाओं पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।
वहीं ब्रिटेन के मोबाइल टेलीकम्युनिकेशन एंड हेल्थ रिसर्च प्रोग्राम का कहना है कि मोबाइल फ़ोन के लंबे समय तक इस्तेमाल करने से कैंसर होने का अधिक ख़तरा है। यह मोबाइल फ़ोन के 10 साल या उससे अधिक इस्तेमाल से हो सकता है। इस योजना के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर लारी चैलिस ने कहा, “हम यह नहीं कह सकते कि मोबाइल फ़ोन का केवल कुछ साल तक इस्तेमाल से भी कैंसर हो सकता है”। दिमाग पर निशाना मोबाइल फ़ोन से रेडियो तरंगें निकलती है और इलेक्ट्रोमैग़्नेटिक फ़ील्ड बनता है, जो दिमाग़ में घुस सकती हैं. कुछ लोगों को भय है कि यह इंसान के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से नुक़सान पहुँचा सकता है।
डेनमार्क और फ़्रांस में हुए ताज़ा अध्ययनों में भी इस बात का पता चला है कि मोबाइल फ़ोन के इस्तेमाल से कैंसर का ख़तरा अधिक नहीं है। वहीं इसराइल में पाँच सै लोगों पर वर्ष हुए अध्ययन में पता चला है कि मोबाइल फ़ोन के अधिक इस्तेमाल से लार की ग्रंथियों में कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है।