घर के मंदिर में करे यह उपाय कभी धन की कमी नहीं होगी
घर एक मंदिर होता है, लेकिन इसी मंदिर में हम एक छोटा सा मंदिर और बनाते हैं। जिसमें हम अपने आराध्य देव की छोटी-छोटी प्रतिमाएं रख हर दिन पूजा करते हैं। लेकिन क्या आप पूजा सही जगह और सही परिस्थितियों में कर रहे हैं। इस बात की जानकारी होना अति आवश्यक है। ऐसे में वास्तु के इन उपायों को आजमाकर घर के मंदिर को और बेहतर बना सकते हैं।
बहुमंजिला भवनों में पूजाघर नीचे के मंजिल में ही होना चाहिए। घर में कभी भी प्राण प्रतिष्ठित देव-प्रतिमाओं को नहीं रखना चाहिए। भगवान की मूर्ति का मुंह पश्चिम या दक्षिण की ओर होना चाहिए। पूजा घर में एक खिड़की एक रोशनदान अवश्य होना चाहिए। पूजाघर में यदि हवन कुंड का निर्माण कर रहे हैं। तो वह चौकोर या षटकोण हो। किसी आवास में त्रिकोणीय या गोलाकार हवन कुंड नहीं होता है। यदि आप पूजाघर में शुभ मंत्रों का प्रयोग करते हैं तो उन्हें प्राण प्रतिष्ठित करवाकर रखे। पूजाघर का रंग हल्के नीले अथवा पीले रंग का होना श्रेष्ठ होता है। इससे ध्यान भंग नहीं होता है।
भगवान विश्वकर्मा ने कहा है कि र्नैत्य, दक्षिण, अग्नि और वायव्य कोण को छोड़कर शेष सभी दिशाओं में जलाशय बनाना चाहिए। तिजोरी हमेशा उत्तर, पूर्व या ईशान कोण में रहना चाहिए। इसके अतिरिक्त आग्नेय दक्षिणा, र्नैत्य पश्चिम एवं वायव्य कोण में धन का तिजोरी रखने से हानि होता है। ड्राईंग रूम को हमेशा भवन के उत्तर दिशा की ओर रखना श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि उत्तर दिशा के स्वामी ग्रह बुध एवं देवता कुबेर हैं। वाणी को प्रिय, मधुर एवं संतुलित बनाने में बुध हमारी सहायता करता है। वाणी यदि मीठी और संतुलित हो तो वह व्यक्ति पर प्रभाव डालती है और दो व्यक्तियों के बीच जुड़ाव पैदा करती है।
र्नैत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) में वास्तु पुरुष के पैर होते हैं। अतः इस दिशा में भारी निर्माण कर भवन को मजबूती प्रदान किया जा सकता है, जिससे भवन को नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से बचाकर सकारात्मक शक्तियों का प्रवेश कराया जा सकता है। अतः गोदाम (स्टोर) एवं गैरेज का निर्माण र्नैत्य कोण में करते हैं। जिस भूखंड का ईशान कोण बढ़ा हुआ हो तो वैसे भूखंड में कार्यालय बनाना शुभ होता है। वर्गाकार, आयताकार, सिंह मुखी, षट्कोणीय भूखंड पर कार्यालय बनाना शुभ होता है। कार्यालय का द्वार उत्तर दिशा में होने पर अति उत्तम होता है। पूर्वोत्तर दिशा में अस्पताल बनाना शुभ होता है। रोगियों का प्रतीक्षालय दक्षिण दिशा में होना चाहिए। रोगियों को देखने के लिए डॉक्टर का कमरा उत्तर दिशा में होना चाहिए। डॉक्टर मरीजों की जांच पूर्व या उत्तर दिशा में बैठकर करना चाहिए। आपातकाल कक्ष की व्यवस्था वायव्य कोण में होना चाहिए।
यदि कोई भूखंड आयताकार या वर्गाकार न हो तो भवन का निर्माण आयताकार या वर्गाकार जमीन में करके बाकी जमीन को खाली छोड़ दें या फिर उसमें पार्क आदि बना दें। भवन को वास्तु के नियम से बनाने के साथ-साथ भाग्यवृद्धि एवं सफलता के लिए व्यक्ति को ज्योतिषीय उपचार भी करना चाहिए। सर्वप्रथम किसी भी घर में श्री यंत्र एवं वास्तु यंत्र का होना अति आवश्यक है। श्री यंत्र के पूजन से लक्ष्मी का आगमन होता रहता है तथा वास्तु यंत्र के दर्शन एवं पूजन से घर में वास्तु दोष का निवारण होता है। इसके अतिरिक्त गणपति यंत्र के दर्शन एवं पूजन से सभी प्रकार के विघ्न-बाधा दूर हो जाते हैं। ज्योतिष एवं वास्तु एक-दूसरे के पूरक हैं।
बिना प्रारंभिक ज्योतिषीय ज्ञान के वास्तु शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता और बिना ‘कर्म’ के इन दोनों के आत्मसात ही नहीं किया जा सकता। इन दोनों के ज्ञान के बिना भाग्य वृद्धि हेतु किसी भी प्रकार के कोई भी उपाय नहीं किए जा सकते।