जीवन में शीतलता चाहिए तो इन्हें चढ़ाये ठंडे प्रसाद का भोग
कोलकाता टाइम्स :
शीतला का पर्व बास्योड़ा न केवल आध्यात्मिक, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व भगवती की शक्ति को नमन करने के अलावा जीवन में शीतलता को उतारने का संदेश देता है। तन और मन में शीतलता से संपूर्ण जीवन शीतल हो जाता है। क्रोध और द्वेष का अस्तित्व नहीं रह जाता।
शीतला को ठंडे पकवानों का भोग लगाया जाता है, जो एक दिन पूर्व बनाए जाते हैं। बास्योड़ा के दिन ठंडे भोजन को प्राथमिकता दी जाती है और गर्म प्रकृति के पदार्थों का सेवन नहीं किया जाता। बास्योड़ा प्रकृति के साथ चलने और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने का उत्सव है।
इस दिन से गर्मी के तेवर तीखे होने लगते हैं। इसलिए सूरज के तेज से स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए ठंड पकवानों का सेवन किया जाता है, जो सेहत के लिए बहुत लाभदायक होता है। चूंकि अन्न की देवी अन्नपूर्णा हैं और शीतला की तरह वे भी दुर्गा का रूप हैं।
इसलिए ठंडे भोजन का भोग शीतला देवी को अर्पित किया जाता है। इस दिन उनका पूजन किया जाता है। देवी को ठंडे पकवान चढ़ाए जाते हैं और इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। देवी को चढ़ाया गया शीतल जल बहुत पवित्र माना जाता है और उसे आंखों पर लगाया जाता है।
इसका संदेश है कि आंखों को परमात्मा का दिव्य उपहार समझो, इनकी रक्षा करो, शीतल जल से इन्हें स्वस्थ रखो तथा अच्छी चीजें देखो। स्वयं शीतल बनो तथा दूसरों के जीवन में भी शीतलता का समावेश करो।
माता का पूजन करने के बाद हल्दी से तिलक लगाया जाता है। इस साल बास्योड़ा पर खास संयोग का निर्माण हो रहा है। पीला रंग गुरु का प्रतीक है जो शुभ माना जाता है और बास्योड़ा को पीला तिलक लगाने की परंपरा है। इसलिए 2016 में बास्योड़ा शीतला के साथ गुरु की कृपा भी लाएगा।
शीतला माता को बास्योड़ा के दिन प्रात: राबड़ी, ठंडी रोटी, चावल, दही, चीनी, मूंग की दाल, बाजरे की खिचड़ी, चुटकी भर हल्दी, जल, रोली, मोली, चावल, दीपक, धूपबत्ती और दक्षिणा आदि अर्पित करनी चाहिए। इसके पश्चात हल्दी से तिलक करें और शीतल जल आंखों पर लगाएं।