July 4, 2024     Select Language
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गजब : इस मंदिर में बलि के बाद भी जिंदा रहते हैं बकरे

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कोलकाता टाइम्स : 

दुनिया मे बहुत से ऐसे शक्तिस्थल है जहां बलि देने की प्रथा है। ऐसे ही बिहार के मुंडेश्वरी मंदिर में भी बलि देने की प्रथा है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां बलि तो दी जाती है लेकिन बकरा मरता नहीं है। जी हां बिहार के कैमूर जिले में मां मुंडेश्वरी का एक अनोखा मंदिर है। यहां बकरे की बलि दी जाती है लेकिन उसकी मौत नहीं होती। यह मंदिर  भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। यह बिहार के कैमूर जिले के भगवानपुर अंचल में कैमूर पर्वतश्रेणी की पवरा पहाड़ी पर 608 फीट ऊंचाई पर स्थित हैं। ऐसी मान्यता है कि ये मंदिर मां का सबसे पुराना मंदिर है।

आपको बता दें कि माता रानी का यह मंदिर बहुत पुराना है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 108 ईस्वी में हुआ थां। हालांकि इस मंदिर के निर्माण को लेकर बहुत सारी मान्यताएं है। लेकिन मंदिर में लगे भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के सूचनापट्ट से यह जानकारी मिलती है कि यह मंदिर 635 ईसवी से पूर्व अस्तित्व में था। गर्भगृह के कोने में देवी की मूर्ति है जबकि बीच में चर्तुमुखी शिवलिंग स्थापति है। बिहार सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी कैलेंडर में भी मां मुंडेश्वरी धाम का चित्र शामिल किया गया है।

मंदिर परिसर में मौजूद शिलालेखों से इसकी ऐतिहासिकता सिद्ध होती है। इस मंदिर के बारे में फेमस पुरातत्वविद कनिंघम की किताब में भी जिक्र है।यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मंदिर का पता तब चलाए जब कुछ गड़रिये पहाड़ी के ऊपर गए और मंदिर के स्वरूप को देखा। यह मंदिर अष्टकोणीय है।

वैसे तो देवी मां के हर शक्तिपीठ की अपनी एक अलग पहचान है। मगर मां मुंडेश्वरी के मंदिर में कुछ ऐसा घटित होता है जिसपर किसी को सहज ही विश्वास नहीं होता।

मंदिर के एक पुजारी रामानुज बताते हैं कि यहां बकरे के बलि की प्रथा अवश्य है, लेकिन यहां किसी के जीवन का अंत नहीं किया जाता। उन्होंने बताया, माता के चरणों में बकरे को समर्पित कर पुजारी अक्षत-पुष्प डालते हैं और उसका संकल्प करवा दिया जाता है, इसके बाद उसे भक्त को ही वापस दे दिया जाता है।

बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद के अध्यक्ष किशोर कुणाल ने आईएएनएस को बताया कि न्यास परिषद ने इस ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल को वर्ष 2007 में अधिग्रहित किया था। उन्होंने बताया कि दुर्गा के वैष्णवी रूप को ही मां मुंडेश्वरी धाम में स्थापित किया गया है। मुंडेश्वरी की प्रतिमा वाराही देवी की प्रतिमा के रूप में हैए क्योंकि इनका वाहन महिष है।

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