इस तरह चंद्रदेव की आराधना से मिट जाएंगे सारे कष्ट
चंद्र देवता हिंदू धर्म के अनेक देवतओं में से एक हैं, उन्हें जल तत्व का देव कहा जाता है। चंद्र के देवता भगवान शिव है। शिवशंकर ने उन्हें अपने सिर पर धारण कर लिया था। चंद्र का दिन सोमवार है। अत: इस दिन चंद्रमा पूजन का विशेष महत्व है। सोमवार के दिन चंद्र देवता का पूजन करने से भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं।
उनका गोत्र अत्रि तथा दिशा वायव है। चंद्रमा की महादशा दस वर्ष की होती है। चंद्रमा के अधिदेवता अप् और प्रत्यधिदेवता उमा देवी हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार चंद्रदेव महर्षि अत्रि और अनुसूया के पुत्र हैं। इनको सर्वमय कहा गया है। यह सोलह कलाओं से युक्त हैं। इन्हें अन्नमय, मनोमय, अमृतमय पुरुषस्वरूप भगवान कहा जाता है।
प्रजापितामह ब्रह्मा ने चंद्र देवता को बीज, औषधि, जल तथा ब्राह्मणों का राजा बनाया। चंद्रमा का विवाह राजा दक्ष की सत्ताईस कन्याओं से हुआ। यह कन्याएं सत्ताईस नक्षत्रों के रूप में भी जानी जाती हैं, जैसे अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी आदि। चंद्रदेव की पत्नी रोहिणी से उनको एक पुत्र मिला जिनका नाम बुध है। चंद्र ग्रह ही सभी देवता, पितर, यक्ष, मनुष्य, भूत, पशु-पक्षी और वृक्ष आदि के प्राणों का आप्यायन करते हैं।
चंद्रदेव अनादि एवं अजेय हैं। चंद्र देव को भी प्रत्यक्ष भगवान माना जाता है। अमावस्या को छोड़कर चंद्रदेव अपनी सोलह कलाओं परिपूर्ण होकर साक्षात दर्शन देते हैं। सोमवार चंद्रदेव का दिन है।
चंद्रमा से शुभ फल प्राप्त करने के लिए इस दिन खीर जरूर खाना चाहिए। यदि कुंडली में चंद्र नीच का हो तो सफेद कपड़े पहनना चाहिए और श्वेत चंदन का तिलक लगाना चाहिए।
चंद्रमा का रत्न मोती है। चंद्र रत्न मोती को चांदी की अंगूठी में जड़वा कर कनिष्ठिका अंगुली में पहनना चाहिए। शीत से पीड़ित होने पर गले में मोतीयुक्त चांदी का अर्धचंद्र लॉकेट पहनने से फायदा होता है।
खगोल विज्ञान में चंद्रमा को भले ही पृथ्वी का उपग्रह माना गया है परंतु ज्योतिष शास्त्र में पृथ्वी के निकट होने के कारण इसे नवग्रहों में शामिल किया गया है क्योंकि अन्य ग्रहों के सामान ही इसका प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है। सूर्य देव की रश्मियों से दमकने वाले चंद्र सोलह कलाओं से युक्त हैं। सात घोड़ों वाले रथ पर कमल के आसन पर विराजमान चंद्र देव के सर पर स्वर्ण मुकुट, गले में मोशन की माला, एक हाथ में गदा और दूसरा हाथ वर मुद्रा में रहता है। समस्त देवता, यक्ष, मनुष्य, भूत, पशु-पक्षी, वृक्ष आदि के प्राणों का आप्यायन करने वाले चंद्रदेव मन के कारक हैं। जिस तरह समुद्र के खारी जल में इनके कारण ज्वार आता है उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में मौजूद रक्त की क्षारीय प्रकृति के कारण पूर्णिमा और अमावस्या तिथि पर चंद्रदेव अपना प्रभाव छोड़ते हैं। यही कारण है कि इन तिथियों पर अक्सर मानसिक रोगियों में पागलपन, अवसाद, उन्माद, दुराचार, चोरी आदि करने की घटनाएं नजर आती हैं।
चंद्र देव की प्रकृति
उत्तर-पश्चिम स्वामी, जल एवं स्त्री तत्व वाले चंद्र देवमाता-पिता, शारीरिक बल, राज्यानुग्रह, संपत्ति से संबंध रखते हैं और कुंडली के चौथे भाव के कारक हैं। चंद्र देव की अपनी राशि कर्क है तथा वृष राशि में उच्च के जबकि वृश्चिक राशि में नीच के प्रभाव रखते हैं। चंद्र देव की मित्रता एवं परस्पर आकर्षण लगभग सभी ग्रहों से है। इनका कोई भी शत्रु नहीं है। कुंडली के छटे, आठवें और बारहवें भाव में चंद्र देव की उपस्थिति जातक के लिए कष्टकारी होती है। वहीं मेष, वृश्चिक और कुम्भ राशियों में चंद्र देव जीवन में नकारात्मक प्रभाव देने वाले होते हैं। विवाह मिलान में चंद्र देव की प्रधानता रहती है। कुंडली का लग्न भाव शरीर है तो चंद्रमा उसका मन है। जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में बैठा होता है वही उसका चंद्र लग्न कहलाता है। सूर्य देव के समान चंद्र देव को भी राजा की पदवी प्राप्त है। पलाश इनका वृक्ष है।
अंक ज्योतिष
अंक ज्योतिष के अनुसार अंक दो चंद्र देवका प्रतिनिधित्व करता है। इस अंक वाले व्यक्ति कल्पनाशील, कला प्रेमी, रोमांटिक, मृदु स्वभाव वाले होते हैं लेकिन इनमें आत्मविश्वास की बेहद कमी होने से ये लोग जल्दी ही निराश हो जाते हैं। चंद्र देव से पीड़ित जातकों में पेट के रोग, गैस की समस्या, आंत्र की सूजन, ट्यूमर, डायबिटीज़, शरीर में दर्द, बुखार, जुकाम, गठिया, वाट रोग, मूत्र रोग, पथरी आदि समस्याएं होने की संभावना रहती है।
चंद्र देव की उपासना
स्वास्थ्य, सौंदर्य, प्रेम, सम्मान और पारिवारिक सुख व शांति के लिए चंद्र देव की उपासना की जाती है। जीवन में मानसिक कष्ट के निवारण, कार्य सिद्धि और व्यापार में लाभ के लिए कम से कम दस और अधिक से अधिक 54 सोमवार को चंद्र देव का व्रत रखते हुए नमक रहित भोजन करना चाहिए। इसके लिए श्वेत वस्त्र धारण करके चंद्र देव को रात्रि में जल अर्पित कर दही, दूध, चीनी और घी से निर्मित भोजन का प्रसाद लगाकर ग्रहण करना चाहिए। चंद्र देव की उपासना के लिए प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव की स्तुति करना और चांदी की धातु में शुद्ध मोती जड़वाकर शुक्ल पक्ष के सोमवार को धारण करने से भी चंद्र देव प्रसन्न होते हैं।
चंद्र देव से संबंधित वस्तुओं जैसे शंख, दूध, दही, मोती, चांदी, श्वेत वस्त्र, चीनी, श्वेत गाय या बैल, मैदा, आटा आदि का सोमवार के दिन दान करना भी शुभ प्रभाव देने वाला होता है।
चंद्र देव के मंत्र
चंद्र देव यद्यपि शुभ, सौम्य और शांत ग्रह माने गए हैं जो पृथ्वी पर अमृत वर्षा करके सभी को दीर्घायु और आरोग्य प्रदान करते हैं परंतु अशुभ होने पर प्रतिकूल प्रभाव भी देते हैं। चंद्र देव की अशुभता के कारण होने वाले विभिन्न रोगों के उपचार के लिए इनके मंत्रों का विधान पूर्वक उच्चारण किया जाता है।
सर्दी-जुकाम के निवारण के लिए “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जप करना चाहिए। पित्ताशय की पथरी में “ॐ सोम सोमाय नमः”, खांसी से निजात पाने के लिए “ॐ ऐं ह्रीं सोमाय नमः”, तथा महिलाओं की मासिक धर्म सम्बन्धी समस्याओं के निराकरण के लिए “ॐ श्राम श्रीं श्रौं सः चंद्राय नमः” मंत्रों का जप करने से लाभ मिलता है।
चंद्र देव के बीजमंत्र “ॐ श्राम श्रीं श्रौं सः चंद्राय नमः” का विधि पूर्वक जप करने से चंद्र देव के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं और चंद्र देव की कृपा मिलने लगती है।