May 20, 2024     Select Language
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रक्षाबंधन से पूर्व यह व्रत रख लो, घर दौड़ी चली आएंगी लक्ष्‍मी

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कोलकाता टाइम्स :

क्षा बंधन पूर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को ‘वरलक्ष्मी-व्रत’ रखा जाता है! इस व्रत की अपनी खास महिमा है। इस व्रत को रखने से घर की दरिद्रता खत्म हो जाती है। घर में लक्ष्‍मी का वास होता है। साथ ही परिवार में सुख-संपत्ति बनी रहती है। इस साल 4 अगस्त को ‘वरलक्ष्मी-व्रत’ रख आप भी संकटों से छुटकारा पा सकते हैं और साथ ही मां लक्ष्मी की भी अपार कृपा पा सकते हैं।

क्‍या है पूजा-विधि

इस दिन प्रात: उठकर स्नान आदि के बाद घर में पूजा के स्थान पर चौक या रंगोली बनाएं। मां लक्ष्मी की मूर्ति को नए कपड़ों, जेवर और कुमकुम से सजाएं। ऐसा करने के बाद एक पाटे पर गणपति जी की मूर्ति के साथ मां लक्ष्मी की मूर्ति को पूर्व दिशा में रखें। साथ ही एक कलश की स्‍थापना करें। चारों ओर चंदन लगाएं याद रखें कि कलश में आधे से ज्यादा चावल भरे हों। पूजा की थाली में एक नया लाल कपड़ा और चावल रखें, मां की मूर्ति के समक्ष दीया जलाएं और साथ ही वरलक्ष्मी व्रत की कथा पढ़ें। पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद महिलाओं को बांटें।

वरलक्ष्‍मी व्रत की यह है कथा

यह व्रत श्रावण मास की पूर्णमासी से पहले आने वाले शुक्रवार के दिन रखा जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक कथा सुनने को मिलती है। एक बार मगध देश में कुण्डी नाम का नगर था। इस नगर का निर्माण स्वर्ण से हुआ था। इस नगर में एक स्त्री चारुमती रहती थी। जो कि अपने पति, सास ससुर की सेवा करके एक आदर्श स्त्री का जीवन व्यतीत करती थी। देवी लक्ष्मी चारुमती से बहुत ही प्रसन्न रहती थी। एक रात्रि को स्वप्न में देवी लक्ष्मी ने चारुमती को दर्शन दिए था उसे वरलक्ष्मी व्रत रखने के लिए कहा।

चारुमती तथा उसके पड़ोस में रहने वाली सभी स्त्रियों ने श्रावण पूर्णमासी से पहले वाले शुक्रवार के दिन दिवि लक्ष्मी द्वारा बताई गयी विधि से वरलक्ष्मी व्रत को रखा। पूजन के पश्चात कलश की परिक्रमा करते ही उन सभी के शरीर विभिन्न स्वर्ण आभूषणों से सज गए। उनके घर भी स्वर्ण के बन गए तथा उनके घर पर गाय, घोड़े, हाथी आदि वाहन आ गए। उन सभी ने चारुमती की प्रशंसा करी क्यूंकि उसने सभी को व्रत रखने को कहा जिससे सभी को सुख समृद्धि की प्राप्ति हुई । कालान्तर में सभी नगर वासियों को इसी व्रत को रखने से सामान समृद्धि की प्राप्ति हो गयी।

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