आज भी कैमरे के सामने लगता है डरती है यह मशहूर एक्ट्रेस
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बतौर अभिनेत्री स्थापित होने के बाद अब वह जुटी हुई हैं निर्माता के तौर पर नाम कमाने में। नित नई सफलता हासिल कर रही अनुष्का शर्मा आज भी कमरे डरती है। उन्होंने खुद इस बात का खुलासा किया। उन्होंने बताया –
मेरी पूरी प्राथमिकता सही फिल्मों व फिल्मकारों के चयन पर केंद्रित रहती है। अनुराग कश्यप भी उनमें से एक थे। तभी तो ‘बैंड बाजा बारात’ के बाद ही ‘बॉम्बे वेल्वेट’ मेरे पास आई तो मैं मना नहीं कर सकी। इनफैक्ट, मैं उस फिल्म में कास्ट होने वाली पहली कलाकार थी। मेरे बाद धीरे-धीरे सब आए। मैं कामर्शियल फिल्में देने वालों के संग भी काम कर रही हूं और जो लीक से हटकर फिल्में बना रहे हैं उनके साथ भी। अनुराग जैसे फिल्मकार किसी भी आम या खास चीज को एक अलग तरीके से एडॉप्ट कर लेते हैं। मिसाल के तौर पर ‘देवदास’ को उन्होंने ‘देव डी’ बना दिया। ‘देव डी’ का नायक डिप्रेस होकर पागल नहीं होता। वह चंद्रमुखी के साथ चला जाता है। वह एंगल मुझे बहुत भाया। मुझे खुद भी मोनोटोनी से नफरत है। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में बच्चा मुंह में ब्लेड लिए है। वैसी अतरंगी चीजें दिखती नहीं हैं।
सबसे पहले होता है डर कि मुझे कुछ नहीं आता। ये कैसे होगा…ये तो मुझे आता ही नहीं है। एक्टिंग का मामला अलग होता है। एक जजमेंट होता है कि आप स्टोरी के साथ आगे बढ़ रहे हैं। फिर सेट पर सैकड़ों लोग भी रहते हैं। कैमरे की निगाहें आप पर होती हैं। ऐसे में नई कहानी के किरदारों को निभाने में आप एकदम नॉर्मल रहें, ऐसा नहीं होता। कम से कम मेरे मामले में तो ऐसा ही है। मेरा फर्स्ट रिएक्शन डर का रहता है, क्योंकि मैं किरदार विशेष को परफेक्शन से निभाने की कोशिश करती हूं। खासकर, ‘एनएच-10’ और ‘बॉम्बे वेल्वेट’ जैसी फिल्मों में। मुझे आज भी कैमरे के सामने खड़े होने पर डर लगता है।
मेरे लिए एक्टिंग साधना है। एक्शन बोलने के बाद कैमरा ऑन होता है और उसके साथ हम एक्टर ट्रांस में चले जाते हैं। वह एक ऐसा समय होता है कि अपने किए का एहसास तुरंत हो जाता है। हमारी जिंदगी लोगों के जजमेंट पर निर्भर करती है लेकिन कैमरे के सामने का वह क्षण पूरी तरह से हमारा होता है। उस क्षण में हम जो करते हैं वही एक्टिंग है।
मैंने कभी नहीं सोचा था कि फिल्मों में जाना है। मॉडलिंग करना चाहती थी जो मैंने किया। हां, मैंने फिल्मों के विषय में कभी भी गलत एटीट्यूड नहीं रखा कि मुझे कभी भी फिल्में नहीं करनी हैं। मैंने हमेशा ओपन माइंड रखा कि अगर, कोई अच्छी चीज आती है और वह मेरे लिए अच्छी हो तो उसे एक्सेप्ट करने में मुझे हिचकिचाहट न रहे।