एक ऐसे अभिनेता जिनकी जंग-ए-आजादी की सच्चाई सुन दंग रह जायेंगे
कोलकाता टाइम्स :
अभिनेता मनोज कुमार, परेश रावल से लेकर अजय देवगन, आमिर खान जैसे अभिनेताओं ने भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस, मंगल पांडे जैसे आजादी के नायकों की संघर्षपूर्ण जिंदगी, देश के प्रति उनकी कुर्बानियों को बखूबी बयां किया है। मगर ये तो सिर्फ ‘फिल्मों के फ्रीडम फाइटर्स’ हैं, एक ऐसा भी अभिनेता था, जो अपनी असल जिदंगी में भी जंग-ए-आजादी का नायक रहा था। जिसने देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई और इसके लिए जेल की सलाखों के पीछे भी जिंदगी बिताई।
चलिए, इस महान शख्सियत के बारे में आपको कुछ क्लू देते हैं। उनका एक डायलॉग बहुत ही चर्चित हुआ था, ‘इतना सन्नाटा क्यों है भाई’। जी हां, अब तो आप समझ ही गए होंगे कि यहां जिस महान शख्सियत का जिक्र कर रहे हैं, वो कोई और नहीं, बल्कि अपने अभिनय से हमारे दिल में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले एके हंगल साहब हैं, जो एक अभिनेता होने के साथ ही स्वतंत्रता सेनानी भी थे। 1970 के दशक में सुपरहिट फिल्म ‘शोले’ में उनका यह डायलॉग खूब चर्चित हुआ था, यह भी आपको बताते चलें कि इस यादगार फिल्म की रिलीज को भी 40 साल पूरे हो गए हैं। 15 अगस्त, 1975 को यह फिल्म रिलीज हुई थी, जो हमेशा के लिए यादगार बन गई।
स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर एके हंगल की शख्सियत से रूबरू कराते हैं, जिनके बारे में बहुत ही कम लोगों को पता होगा। एके हंगल का पूरा नाम अवतार किशन हंगल था। उनका जन्म एक फरवरी, 1914 को सियालकोट, पंजाब में हुआ था, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। हालांकि, उन्होंने अपने बचपन और जवानी के दिन पेशावर में बिताए। फिर उनके पिता पंडित हरि किशन हंगल के रिटायरमेंट के बाद सभी पेशावर छोड़ कराची चले आए। इस तरह एके हंगल का पाकिस्तान के इन तीनों शहर से काफी करीबी रिश्ता रहा था।
वैसे तो एके हंगल साहब को शुरुआती दिनों में जीवनयापन के लिए एक दर्जी के तौर पर काम करना पड़ा था, मगर उन्होंने 1929 से 1945 के बीच भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक सक्रिय भागीदारी निभाई। इस बीच पाकिस्तान में एक थियेटर ग्रुप के साथ काम करते हुए रंगममंच की दुनिया से भी जुड़े रहे। हालांकि कम्यूनिस्ट होने और ब्रिटिश हुकूमत की खिलाफत करने के कारण उन्हें तीन सालों तक पाकिस्तान की जेल में सलाखों के पीछे भी रहना पड़ा। कहा जाता है कि महज पांच साल की उम्र में उन्होंने 1919 में जलियावाला बाग दंगे के खिलाफ विरोध-प्रदर्शनों में भी हिस्सा लिया था।
खैर, तीन साल की जेल की सजा काटने के बाद वो 1949 में बॉम्बे (जो अब मुंबई है) आए और यही बस गए। तब तक देश के दो टुकड़े हो गए थे, एक हिंदुस्तान और दूसरा पाकिस्तान। एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि उस वक्त उनकी जेब में मात्र 30 रुपये थे और उन्हें पाकिस्तान से जाने को कह दिया गया था, क्योंकि वो अपने वैचारिक सिद्धांत के खिलाफ झुकने को तैयार नहीं थे। मुंबई आने के बाद भी वो 1965 तक रंगमंच की दुनिया से जुड़े रहे और फिर फिल्मों की ओर रुख किया। इस तरह उनकी जिंदगी चलती रही और फिर 26 अगस्त, 2012 को वो हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा और हमारे दिल में अपनी यादें छोड़ चले गए।
एक साक्षात्कार के दौरान एके हंगल साहब ने कहा था कि वो अंग्रेजी हुकूमत के सामने कभी नहीं झुके। उनके मुताबिक, ‘वो अंग्रेजों के सामने भी सिर ऊंचा रखते थे।’ एक बार उन पर शिवशेना ने पाकिस्तानी होने का आरोप भी लगाया था। उन्होंने पाकिस्तान की आजादी का जश्न मनाने के लिए वीजा आवेदन के लिए अप्लाई किया था। तब उन्होंने कहा था कि वो किसी से नहीं डरते हैं। वो अंग्रेजों से भी नहीं डरते थे। एके हंगल साहब आप एक स्वतंत्रता सेनानी और एक अभिनेता के तौर पर हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे।