सिर्फ धर्म नहीं विसर्जन में छिपा है यह विज्ञान
कोलकाता टाइम्स :
गणेश जी की स्थापना और फिर उनका विजर्सन एक बड़े त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस विसर्जन के पीछे अध्यात्म से जुड़े कई कारण माने जाते हैं। जिसमें एक मुख्य कारण यह भी माना जाता है। स्थापना और विसर्जन से यह संदेश दिया जाता है कि इस दुनिया में कुछ भी अटल नहीं है। हर किसी को एक न एक दिन जल व जमीन में समाना ही होता है। सर्वप्रथम पूज्यनीय भगवान गणपति जी को भी आखिर एक निश्चित समय के बाद प्रकृति के चक्रों के मुताबिक जल में समाहित किया जाता है।
पर्यावरण शुद्ध हो जाता है:
वहीं गणेश विजर्सन के पीछे वैज्ञानिक कारण पर्यावरण शुद्ध करना है। इस मौसम में नदी, तालाब, पोखरों में जमा हुआ बारिश का पानी गणेश विजर्सन से शुद्ध हो जाता है। जिससे मछली, जोक जैसे अन्य दूसरे जीव-जंतुओं को बारिश के पानी से किसी तरह की परेशानी नहीं होती है। इतना ही नहीं विसर्जन के लिए चिकनी मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा शुभ मानी जाती है, क्योंकि मिट्टी पानी में आसानी से घुल जाती है। पुराणों में भी गणेश जी मिट्टी की मूर्ति का निर्माण लिखा गया है।
हल्दी पानी को स्वच्छ बनाती:
मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा को चावल व फूलों के रंगों से रंगने के पीछे का कारण यह है कि इससे पानी दूषित नहीं बल्कि साफ हो जाता है। इसके अलावा गणेश विजर्सन के समय पानी में कई सारी वो चीजें नदी, तालाबों में प्रवाहित होती हैं, जो बारिश के जल को आसानी से स्वच्छ करती हैं। विजर्सन के दौरान गणेश प्रतिमा के साथ हल्दी कुमकुम काफी मात्रा में पानी में समाहित होती है। हल्दी एक एंटीबैटिक मानी जाती है। इसके साथ ही दुर्वा, चंदन, धूप, फूलभी पर्यावरण को स्वच्छ बनाते हैं।
प्रतिमाएं पानी में घुलती नहीं:
इस तरह किए जाने वाले गणेश विसर्जन को ही ईको फ्रेंडली विसर्जन के रूप में जाना जाता है। सदियों से ऐसा होता आया है। जबकि आज के दौर में अधिकांश भक्त गणेश उत्सव में प्लास्टर ऑफ पेरिस यानी की पीओपी की बनी बड़ी-बड़ी प्रतिमाओं को स्थापित करते हैं। जब कि ऐसी प्रतिमाओं की स्थापना करना शुभ नहीं माना जाता है। प्लास्टर ऑफ पेरिस प्रतिमाएं पानी में घुलती नहीं हैं। इसके अलावा उनके केमिकल वाले रंग पानी को जहरीला बनाते हैं। जो पर्यावरण के लिहाज से खतरनाक होता है।