माहवारी के समय बालू-जानवर की खाल का होता है इस्तेमाल
कोलकाता टाइम्स :
पीरियड्स जिस पर लोग खुलकर बात तक नहीं करना चाहते हैं. आज भी महिलाओं की इस परेशानी को नहीं समझा जाता है और कई जगह पर उन्हें आज भी अजीब से रीती रिवाजों का सामना करना पड़ता है. शहरों में तो फिर भी जागरुकता आई है, लेकिन आपको बता दें कि कई गांव ऐसे हैं, जहां पीरियड्स के दौरान महिलाओं को अछूत समझा जाता है. उन्हें घर के किसी कमरे में कैदियों की तरह रहना पड़ा है. इसी से जुड़े हम आपको कुछ और फैक्ट्स बताने जा रहे हैं जिनके बारे में सुनकर आप भी हैरान रह जायेंगे.
कुछ जगह पर महिलाएं सैनेट्री पैड या कपड़ा नहीं बल्कि मासिक धर्म के दौरान वो घास, पुआल, राख और बालू जैसी चीजों का इस्तेमाल करती है.
पीरियड्स के दौरान कागज इस्तेमाल : बीते समय में कई जगहों पर माहवारी को रोकने के लिए लकड़ी के टुकड़ों से लेकर जानवर की खाल तक का इस्तेमाल किया करती थीं.
इतना ही नहीं, आपको बता दें कि मिस्र में महिलाएं पीरियड के फ्लो को रोकने के लिए ‘पेपरिस’ का इस्तेमाल करती थीं. ‘पेपरिस’ एक मोटा कागज होता था जिसपर उस दौरान लिखने का काम किया जाता था. महिलाएं उसे भिगो कर नैपकीन की तरह इस्तेमाल करती थी.
वहीं चीन में महिलाएं मासिक धर्म के दौरान ब्लड फ्लो को रोकने के लिए रेत का इस्तेमाल करती थीं. भारत के भी कई गांवों में पीरियड को रोखने के लिए राख का इस्तेमाल किया जाता था. महिलाएं इन रेत या राख को एक बड़े कपड़े में टाइट बांध कर वो इसे पीरियड पैड्स के तौर पर इस्तेमाल करती थीं.
घास का इस्तेमाल : अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में महिलाएं मासिक धर्म के दौरान रक्त स्त्राव को रोकने के लिए ‘घास’ का इस्तेमाल करती थीं. भले ही ये घास महिलाओं को नुकसान पहुंचाता था, लेकिन उनके पास इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प भी नहीं था.
भारत में भी कई गांवों में महिलाएं धान के सूखे पुआल का इस्तेमाल पीरियड के दौरान करती थी.
जानवरों की खाल : पुराने वक्त में ठंडी जलवायु वाले क्षेत्र में रहने वाली महिलाएं माहवारी के दौरान जानवरों के खालों का इस्तेमाल सैनेट्री नैपकिन की तरह करती थी. उनकी खाल का इस्तेमाल मासिक धर्म में होने वाले ब्लड फ्लो के दाग से बचने के लिए करती थीं.