June 30, 2024     Select Language
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हैरतअंगेज है इस राजा द्वारा देश का नाम बदलने की कहानी 

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कोलकाता टाइम्स :

स्‍वाजीलैंड अफ्रीका का एक राजशाही मानने वाला देश है, नहीं अब आप उसे था भी कह सकते हैं। इसके राजा का नाम मस्वाती है। ये देश अफ्रीका की अंतिम साम्राज्यवादी प्रणाली वाला देश भी कहलाता है। बीते बुधवार को राजा मस्वाती तृतीय ने अपने देश स्‍वाजीलैंड का नाम बदलकर द किंगडम ऑफ इस्वातिनी रखने की एलान कर दिया। राजा ने ये घोषणा देश की आजादी के 50 साल पूरे होने पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान की। इस्वातिनी का अर्थ होता है ‘स्वाजियों की भूमि’। इस दिन राजा की 50वीं सालगिरह के रूप में भी मनाया गया था। हालांकि राजा मस्वाती बीते कुछ सालों से स्वाज़ीलैंड को इस्वातिनी कहते आ रहे थे, लेकिन इसके बावजूद खुद उनके देशवासियों के लिए भी ये बदलाव खासा अप्रत्याशित था।

पहले भी किया था इस नाम का प्रयोग

राजा मस्‍वाती स्‍वाजीलैंड को नया नाम देना चाहते हैं इस इरादे की भनक दुनिया भर को काफी पहले से थी। उनका इरादा साल 2017 में संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करते हुए, और उससे भी पहले साल 2014 में स्‍वाजीलैंड की संसद के उद्घाटन के वक्त भी सामने आया था जब उन्‍होंने अपने देश के लिए इस्वातिनी नाम का इस्तेमाल किया था। नाम बदलने के पीछे राजा का तर्क था कि लोग उनके देश के पूर्व नाम को स्‍वीटजरलैंड के नाम से जोड़ कर भ्रमित हो जाते हैं। इसके बावजूद वो आधिकारिक रूप से ऐसा करने की घोषणा करेंगे इस बारे में लोगों अंदाजा नहीं था। एक अनुमान के अनुसार राजा के इस फैसले वहां के कुछ नागरिक खुश नहीं है। उनका कहना नाम बदलने की जगह राजा को देश की सुस्त अर्थव्यवस्था को सुधारने में ध्‍यान लगाना चाहिए। इसके बावजूद एलान हो चुका है और राजा की बात माननी ही होती है।

तीन पीढ़ियों से शासन और अनोखे अंदाज 

मस्‍वाती अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं इस्वातिनी पर राज कर रही है। उनके दादा और पिता उनके पहले सिंहासन पर बैठ चुके हैं। मस्‍वाती, सोभूज़ा द्वितीय के बेटे है और उनकी 15 बीवियां हैं। उनकी आधिकारिक आत्‍मकथा के अनुसार इनके पिता ने भी कई शादियां की थीं। 82 साल तक गद्दी पर बैठने वाले सोभूजा द्वितीय के नाम से प्रसिद्ध उनके पिता की 125 पत्‍नियां थीं। तभी से ‘शेर’ के नाम से प्रसिद्ध इस देश के राजाओं को कई पत्‍नियां रखने और देश की पारंपरिक पोशाक पहनने के लिए ही जाना जाने लगा है। कई बार यहां के शासनाध्‍यक्षों की हृयूमन राइट एक्‍टिविस्‍ट्स के द्वारा निंदा की जा चुकी है और उन पर राजनीतिज्ञ दलों पर प्रतिबंध लगाने और महिला अधिकारों के हनन के आरोप लगते रहे हैं।

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