इकलौता ऐसा जज जिसे मिली थी फांसी की सजा, वजह है बेहद चौकानें वाली
कोलकाता टाइम्स :
आपने ऐसा कभी नहीं सुना होगा की किसी जज को फांसी की सजा हुई हो. जी हां, ऐसा हुआ है इस जज का नाम है उपेंद्र नाथ राजखोवा.वह असम के ढुबरी जिले में जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद पर तैनात थे.उन्हें सरकारी आवास भी मिला हुआ था, जिसके अगल-बगल में अन्य सरकारी अधिकारियों के भी आवास थे.
यह बात 1970 की है.तब उपेंद्र नाथ राजखोवा सेवानिवृत होने वाले थे.फरवरी 1970 में वो सेवानिवृत हो गए थे.हालांकि उन्होंने सरकारी बंगला खाली नहीं किया था.इसी बीच उनकी पत्नी और तीन बेटियां अचानक से गायब हो गईं.हालांकि इसके बारे में उपेंद्र नाथ के अलावा किसी को भी कुछ पता नहीं था.जब भी उनसे कोई पूछता कि उनका परिवार कहां है, तो वह कुछ न कुछ बहाना बना देते थे.अप्रैल 1970 में उपेंद्र नाथ राजखोवा सरकारी बंगला खाली करके चले गए और उनकी जगह एक दूसरे जज आ गए.हालांकि राजखोवा कहां गए, इसके बारे में किसी को भी पता नहीं था.चूंकि राजखोवा के साले यानी उनके पत्नी के भाई पुलिस में थे, उन्हें कहीं से पता चला कि राजखोवा सिलीगुड़ी के एक होटल में कई दिनों से ठहरे हुए हैं.इसके बाद वह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ होटल में गए और उनसे मिले और अपनी बहन और भांजियों के बारे में पूछा.इसपर राजखोवा ने तरह-तरह के बहाने बनाए.इस बीच उन्होंने कमरे के अंदर ही आत्महत्या करने की भी कोशिश की, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया.
हालांकि बाद में राजखोवा ने पुलिस के सामने ये कबूल किया कि उन्होंने ही अपनी पत्नी और तीनों बेटियों की हत्या की है और उन चारों की लाश को अपने उसी सरकारी बंगले में जमीन के अंदर गाड़ दिया है.इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.लगभग एक साल तक केस चला और निचली अदालत ने उपेंद्र नाथ राजखोवा को फांसी की सजा सुनाई. इसके बाद उपेंद्र नाथ राजखोवा ने फांसी की सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा.फिर राजखोवा ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट और निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा.कहा जाता है कि राजखोआ ने दया याचिका के लिए राष्ट्रपति से भी अपील की थी, लेकिन उन्होंने भी उसकी अपील को ठुकरा दिया था. 14 फरवरी, 1976 को जोरहट जेल में पूर्व जज उपेंद्र नाथ राजखोवा को उनकी पत्नी और तीन बेटियों की हत्या के जुर्म में फांसी दे दी गई.लेकिन इसमें सबसे बड़ी बात है कि राजखोवा ने अपनी ही पत्नी और बेटियों की हत्या क्यों की थी, इसके बारे में उन्होंने कभी किसी को नहीं बताया.यह अभी तक एक राज ही बना हुआ है.