July 3, 2024     Select Language
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सिपाही से प्यार कर यह तवायफ बन बैठी थी रानी

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कोलकाता टाइम्स :

दुनियाभर में कई ऐसी रानियां हुईं हैं जिन्होंने अपने कोई ना कोई ऐसे किस्से छोड़े हैं जिन्हे सुनकर सुनने वालों के होश उड़ जाए. जी हाँ, आज हम बताने जा रहे हैं बेगम समरू के बारे में. वह दिल्ली के चावड़ी बाज़ार की तवायफ़ थीं जो एक सिपाही के प्यार में पड़कर सरधना सल्तनत की मलिका बनीं. जी हाँ, मेरठ से क़रीब 24 किमी की दूरी पर स्थित सरधना का गिरजाघर विश्व प्रसिद्ध है और यह वो गिरजाघर है जिसमें बेनज़ीर ख़ूबसूरती की मलिका बेगम समरू की रूह बसती है.

India's forgotten power broker: Begum Samru. What was her secret?

कहा जाता है अपनी अद्भुत कारीगरी के लिए मशहूर ये गिरजाघर अपने भीतर एक ऐसी दिलेर महिला की कहानी को संजोए हुए है जो तवायफ़ से प्रेमिका प्रेमिका से पत्नी फिर पत्नी से सरधना सल्तनत की मलिका बनीं. अब आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं बेगम समरु की दिलचस्प कहानी. साल 1767 में दिल्ली के चावड़ी बाजार इलाक़े से यह कहानी शुरू होती है जो 18वीं सदी में तवायफ़ों का मोहल्ला हुआ करता था. उस समय यहाँ कई सैनिक आते थे और इन्हीं में से एक वॉल्टर रेनहार्ड सोम्ब्रे भी था. कहा जाता है इसी दौरान फ़्रांस का एक किराए का सैनिक वॉल्टर रेनहार्ड सोम्ब्रे भी लड़ाई के बाद दिल्ली में रुका हुआ था और सोम्ब्रे मुगलों की ओर से अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ रहा था. जो बेहद खुंखार माना जाता था.

इस कारण से उसे ‘पटना का कसाई’ भी कहा जाता था. कहते हैं एक दिन वॉल्टर सौम्ब्रे भी चावड़ी बाजार के रेड लाइट एरिया में एक कोठे पर पहुंचा और उसकी नजर एक ख़ूबसूरत लड़की पर पड़ी. उसके बाद वॉल्टर को इस लड़की से पहली नज़र में ही प्यार हो गया और वह लड़की कोई और नहीं बल्कि 14 साल की फ़रज़ाना (बेगम समरू) थीं. फ़रज़ाना की मां चावड़ी बाज़ार की तवायफ़ हुआ करती थी और वह उसे चावड़ी बाज़ार की मशहूर तवायफ़ खानम जान के सुपुर्द कर इस दुनिया से चली गई थी. कहा जाता है इस दौरान फ़रज़ाना से उम्र में 30 साल बड़े वॉल्टर ने उसे अपनी प्रेमिका बनाने का प्रस्ताव रखा जिसे फ़रजाना ने बेदर्दी से ठुकरा दिया. उसके बाद फ़रज़ाना ने प्रस्ताव रखा कि अगर आप मुझसे तलवारबाज़ी में जीत गये तो मैं आपकी रखैल बन जाउंगी लेकिन हारे तो आपको मुझसे धार्मिक तरीके से विवाह करना होगा.

उसके बाद फ़रजाना को भी वॉल्टर के प्यार हो गया और फ़रज़ाना वॉल्टर के साथ लखनऊ, रुहेलखंड, आगरा, भरतपुर और डींग होते हुए आख़िर में सरधना पहुंचे. उसके बाद खानम जान के गुंडे ने उनका पीछा करते हुए सरधना पहुंच गये, लेकिन फ़रज़ाना ने ख़ुद लड़ते हुए इन गुण्डों को मौत के घाट उतार दिया. कहा जाता है उसकी हिम्मत देख वॉल्टर सोम्ब्रे फ़रज़ाना की बहादुरी का दीवाना हो गया. वॉल्टर ने ईसाई धर्म के तहत विवाह कर लिया और सोम्ब्रे उपनाम को अपना कर फ़रज़ाना ने अपना नाम समरू बेगम रख लिया. कहते हैं इसके बाद फ़रजाना 48 साल तक सरधना सल्तनत की मलिका रहीं.

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