यूँ ही कातिल के हाथ में खंज़र नहीं आता
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सलिल सरोज
इस तिश्नगी का कोई हल नज़र नहीं आता
मेरा कोई रास्ता भी तो तेरे घर नहीं आता 1
मेरा कोई रास्ता भी तो तेरे घर नहीं आता 1
जिसे छोड़ दिया, उसे बस छोड़ ही दिया
फिर से मनाने का हमें हुनर नहीं आता 2
वो दरिया है तो उसे मौजों का गुरूर है
हम समंदर हैं , हमें भी सबर नहीं आता 3
जो दिया है , उतना ही वापस मिलता है
सूखे पेड़ों पर कभी गुल मोहर नहीं आता 4
जब से सियासत मिली है जंगल की उसे
फिर कोई दूसरा जानवर नज़र नहीं आता 5
नीयत खराब ना हो तो कुछ नहीं होता
यूँ ही कातिल के हाथ में खंज़र नहीं आता 6