यहां होती है जीवित माता-पिता इस्वर बनाके पूजा
वृद्धावस्था में संतान माता-पिता का भगवान की तरह श्रद्धा सम्मान कर पूजन अर्चन करते हैं। बुजुर्गो के सम्मान में परंपरा विगत तेरह वर्ष से निर्वहन की जा रही है। यहां की पारिजात युवक समिति ने जनक जननी के सम्मान की परंपरा विकसित कर समाज में एक नया संदेश देने की कोशिश की है। परंपरा जहां वयोवृद्धजन में जीवन का संबल प्रदान कर रही है वहीं नई पीढ़ी में माता व पिता के प्रति अगाध प्रेम का पाठ भी पढ़ाती है। समिति कि परंपरा यहां गांव-गांव फैल रही है। अपनी संतान से जिंदगी के आखिरी पड़ाव में मिलने वाला सम्मान बुढ़ापे में मजबूत संबल बन रहा है। हालांकि यह प्रथा वैदिक रीति रिवाज से कुछ अलग हटकर है।
सामान्यतया पितृपक्ष में पुत्र दिवंगत माता-पिता को हर वर्ष याद कर श्राद्ध आयोजित करता है और उनके प्रति कृतज्ञ होता है वहीं इस परंपरा के तहत जीवित तौर पर माता पिता का विधि विधान से पूजन किया जाता है। सफदरगंज स्थित समिति कार्यालय परिसर में पितृपक्ष में जननी-जनक श्रद्धा सम्मान समारोह देखते ही बनता है। समारोह पितृ विसर्जन अमावस्या से एक दिन पहले आयोजित किया जाता है। समारोह में करीब ढाई से तीन सौ तक की संख्या में माता-पिता के साथ उनका कुटुम्ब शामिल होता है। समारोह का खर्च सब मिलजुलकर उठाते हैं।
समिति भी अपना योगदान करती है। पुत्र माता-पिता के लिए पांच नए कपडे़ उनकी पसंद के पकवान व अन्य खाद्य सामग्री की व्यवस्था करते हैं। माता-पिता की विधि-विधान से आरती कर चरणों में पुष्प अक्षत अर्पित उनका वंदन करते हैं। इस परंपरा का निर्वहन करने वाले पुत्रों का कहना है माता पिता देव की तरह पूजन-अर्चन व संतानों द्वारा क्षमा याचना करते देख फूले नहीं समाते हैं। उनके चेहरे पर ऐसी खुशी आती है जो शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती।