July 5, 2024     Select Language
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एक-दो नहीं पूरे 20 साल तक चला यह युद्ध, छोटे से देश पर बरसाये 260 मिलियन क्लस्टर बम

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कोलकाता टाइम्स : 
तिहास में कई ऐसे भयानक युद्ध हुए है, जिनमे लाखों लोगों की मौतें हुई है. इतिहास में एक ऐसे ही युद्ध की शुरुआत आज से करीब 65 साल पहले हुई थी, जिसे वियतनाम युद्ध के नाम से जाना जाता है. जी हां, इस युद्ध में कई सारे लोगों ने अपनी जान गवाई थी. वियतनाम युद्ध शीतयुद्ध काल में वियतनाम, लाओस और कंबोडिया की धरती पर लड़ी गई एक भयंकर लड़ाई का नाम है. लगभग 20 साल तक चली यह लड़ाई साल 1955 में शुरू हुई थी, जो 1975 में जाकर खत्म हुई. यह युद्ध उत्तरी वियतनाम और दक्षिण वियतनाम की सरकार के बीच लड़ा गया था. इसे ‘द्वितीय हिंद-चीन युद्ध’ भी कहा जाता है.

बता दें की इस भीषण युद्ध में एक तरफ चीनी जनवादी गणराज्य और अन्य साम्यवादी देशों से समर्थन प्राप्त उत्तरी वियतनाम की सेना थी तो दूसरी तरफ अमेरिका और मित्र देशों के साथ कंधे से कंधा मिला कर लड़ रही दक्षिणी वियतनाम की सेना. यह युद्ध और भी भयानक तब हो गया था जब लाओस जैसे छोटे से देश ने उत्तरी वियतनाम की सेना को अपनी धरती पर लड़ाई के लिए इजाजत दे दी. इससे अमेरिका पूरी तरीके से बौखला गया और उसे सबक सिखाने के लिए हवाई हमले की योजन भी बना ली. अमेरिकी वायुसेना ने दक्षिण पूर्व एशिया के इस छोटे से देश लाओस पर इतने बम गिराए कि कहा जाता है कि लाओस का भविष्य बारूद के ढेर के नीचे दबा हुआ है. ये भी कहते हैं कि अमेरिका ने साल 1964 से लेकर 1973 तक पूरे नौ साल लाओस में हर आठ मिनट में बम गिराए थे. एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका ने प्रतिदिन दो मिलियन डॉलर (आज के हिसाब से करीब 15 करोड़ रुपये) सिर्फ और सिर्फ लाओस पर बमबारी करने में ही खर्च कर दिए थे.

हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 1964 से 1973 तक अमेरिका ने लगभग 260 मिलियन यानी 26 करोड़ क्लस्टर बम वियतनाम पर दागे हुए थे, जो कि इराक के ऊपर दागे गए कुल बमों से 210 मिलियन यानी 21 करोड़ अधिक हैं. एक अनुमान के अनुसार, इस भीषण युद्ध में 30 लाख से भी अधिक लोग मारे गए थे, जिसमें 50 हजार से अधिक अमेरिका सैनिक भी शामिल हो गये . कई लोगों का मानना है कि इस युद्ध में अमेरिका की हार हुई थी. हालांकि कई विशेषज्ञों का मानना है कि 20 साल तक चले इस भीषण युद्ध में किसी की भी जीत नहीं हुई. युद्ध की वजह से अमेरिकी सरकार को अपने ही लोगों और अंतरराष्ट्रीय दबाव का सामना करना पड़ा था, जिसके बाद वह युद्ध से पीछे हट गया था.

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